16 अक्टूबर, 2016, कैथल, हरियाणा
पंजाब और हरियाणा हरित क्रांति के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। इन प्रदेशों में फसल अवशेषों को जलाने से मृदा में पोषक तत्वों व जैव विविधता की हानि तथा वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ ही मनुष्यों में श्वसन संबंधित बीमारियों की भी संभावना बढ़ जाती है। इससे निपटने के लिए केवल एक ही दिशा में उठाया गया कदम या प्रौद्योगिकियां काफी नहीं होगी। इसके लिए सामाजिक व्यवस्था में जागरूकता लानी होगी। भाकृअनुप – कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (भाकृअनुप – अटारी), क्षेत्र – 1 द्वारा हरियाणा और पंजाब राज्यों के केवीके, भाकृअनुप संस्थानों, राज्यों के कृषि विभागों, किसान संगठनों और सामाजिक संगठनों की सहायता से कृषि अवशेष जलाने के विरूद्ध चेतना मास (16 अक्टूबर – 15 नवम्बर, 2016 तक) का आयोजन किया जा रहा है।
उपलब्ध तकनीकी विकल्पों द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन और इसे जलाने के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से केवीके, कैथल द्वारा कृषि विभाग के सहयोग से किसान सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के प्रमुख आकर्षण आपसी किसान संवाद (एफ टू एफडी) और विभिन्न अवशेष प्रबंधन वाली मशीनों (हैप्पी सीडर, रेसिड्यू बालर, चॉपर, स्प्रेडर्स आदि) के सजीव प्रदर्शन भी आयोजित किए गए।
डॉ. गुरुबचन सिंह, अध्यक्ष, एएसआरबी एवं मुख्य अतिथि द्वारा चेतना मास का शुभारंभ किया गया। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों का प्रयोग मृदा स्वास्थ्य सुधार, प्रदूषण नियंत्रण, उत्पादकता वृद्धि और टिकाऊ व सहिष्णु खेती में किया जा सकता है। डॉ. सिंह ने किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों के मद्देनजर संसाधन संरक्षक प्रौद्योगिकियों को अपनाने का सुझाव दिया।
डॉ. राजबीर सिंह, निदेशक, अटारी, लुधियाना, डॉ. पी.सी. शर्मा, निदेशक, सीएसएसआरआई, करनाल, डॉ. जी.पी. सिंह, निदेशक, आईआईडब्ल्यूबीआर और डॉ. एस.एस. सिवाच, निदेशक (कृषि विस्तार), सीसीएसएचएयू ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।
कार्यक्रम में 1500 किसान एवं महिला कृषकों ने सम्मेलन में भाग लिया।
(स्रोतः भाकृअनुप – कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी), लुधियाना)







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