भाकृअनुप का प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रभाग 15 अनुसंधान संस्थानों, 10 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं, 3 नेटवर्क के माध्यम से देश में भोजन, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन एवं सतत उपयोग के लिए प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए बुनियादी तथा रणनीतिक अनुसंधान कर रहा है। सहयोगी केन्द्रों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के व्यापक नेटवर्क के साथ जल तथा संरक्षण कृषि पर परियोजनाएं और 2 कंसोर्टिया अनुसंधान मंच के साथ एनआरएम अनुसंधान कार्यक्रमों को विभिन्न विषयों के परिप्रेक्ष्य में प्राथमिकता दी गई है, जैसे; मृदा सूची और लक्षण वर्णन, एकीकृत मृदा-जल-पोषक तत्व प्रबंधन, वाटरशेड प्रबंधन, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी, फसल विविधीकरण, एकीकृत खरपतवार प्रबंधन, कृषि वानिकी सहित एकीकृत कृषि प्रणाली, शुष्क भूमि खेती, शुष्क, तटीय और पहाड़ी कृषि, अजैविक तनाव प्रबंधन, जलवायु अनुकूल कृषि, संरक्षण कृषि, अपशिष्ट जल उपयोग, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पोषक तत्व तथा जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग। प्रभाग जमीनी स्तर पर मुद्दों को संबोधित करते हुए किसानों की भागीदारी मोड में अनुसंधान कर रहा है और किसानों की संसाधन उपलब्धता, पारंपरिक स्वदेशी प्रौद्योगिकी जानकारी और जमीनी स्तर के कृषि नवाचारों को ध्यान में रखते हुए स्थान विशिष्ट, लागत प्रभावी, पर्यावरण अनुकूल, सामाजिक रूप से स्वीकार्य वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों का विकास कर रहा है।
एनआरएम अनुसंधान के परिणाम को सरकार की विभिन्न विकासात्मक योजनाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया गया है जो देश के कृषि उत्पादकता की वृद्धि में योगदान दिया है।
लक्ष्य
प्राकृतिक संसाधन आधार को खराब किए बिना उच्च इनपुट उपयोग दक्षता, कृषि उत्पादकता और लाभप्रदता के लिए स्थान विशिष्ट, लागत प्रभावी, पर्यावरण अनुकूल संरक्षण और प्रबंधन प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
दृष्टि
देश में खाद्य, पोषण, पर्यावरण और आजीविका सुरक्षा प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन।
शासनादेश
स्थायी कृषि उत्पादन और संसाधन संरक्षण के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों की योजना बनाना, समन्वय करना तथा निगरानी करना साथ ही प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में ज्ञान भंडार के रूप में कार्य करना है।
प्राथमिकता वाले क्षेत्र
एनआरएम डिवीजन की प्रमुख चिंताएं कम कृषि उत्पादकता और लाभप्रदता, भूमि क्षरण, कम जल उत्पादकता, मिट्टी के स्वास्थ्य में गिरावट और कम पोषक तत्व उपयोग दक्षता, जलवायु परिवर्तन सहित अजैविक तनाव और वृक्ष आवरण की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में गिरावट हैं। इन मुद्दों के समाधान के लिए, प्रभाग ने अनुसंधान के निम्नलिखित प्राथमिकता वाले क्षेत्र निर्धारित किए हैं:
- भूमि संसाधन सूची, लक्षण वर्णन कृषि भूमि उपयोग योजना (एनबीएसएसएलयूपी, नागपुर)
- एकीकृत जल प्रबंधन अपशिष्ट जल उपयोग (आईआईडब्ल्यूएम, भुवनेश्वर; सीएसएसआरआई, करनाल)
- पोषक तत्व और जैव-अपशिष्ट प्रबंधन (आईआईएसएस, भोपाल)
- समस्याग्रस्त मिट्टी का प्रबंधन- लवणीय, क्षारीय, अम्लीय और जलयुक्त मिट्टी (सीएसएसआरआई, करनाल; आईआईएसएस, भोपाल)
- मृदा एवं जल संरक्षण- सहभागी जलसंभर प्रबंधन (आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून)
- फसल विविधीकरण (आईआईएफएसआर मोदीपुरम; सीआरआईडीए, हैदराबाद)
- जैविक खेती (एनओएफआरआई, ताडोंग, सिक्किम; आईआईएफएसआर, मोदीपुरम)
- वर्षा आधारित/ शुष्क भूमि खेती और कृषि आपदा प्रबंधन को मुख्यधारा में लाना (सीआरआईडीए, हैदराबाद)
- जलवायु अनुकूल कृषि तथा अजैविक तनाव प्रबंधन (सीआरआईडीए, हैदराबाद; एनआईएएसएम, बारामती; सीएसएसआरआई, करनाल)
- कृषि वानिकी प्रबंधन (सीएएफआरआई, झाँसी)
- खरपतवार प्रबंधन (डीडब्ल्यूआर, जबलपुर)
- एकीकृत कृषि प्रणालियों का विकास (आईआईएफएसआर मोदीप्राम; भाकृअनुप-आरसीएनईएच, बारापानी; सीसीएआरआई गोवा; भाकृअनुप-आरसीईआर, पटना; सीआरआईडीए, हैदराबाद और एमजीआईएफआरआई, पिपराकोठी, मोतिहारी, बिहार)
- शुष्क भूमि प्रबंधन तथा सौर खेती (काजरी, जोधपुर)
- संरक्षण कृषि एवं संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी (भाकृअनुप-आरसीईआर, पटना; सीआरआईडीए हैदराबाद; आईआईएफएसआर मोदीप्राम; सीएसएसआरआई, करनाल)
- पर्वतीय कृषि (भाकृअनुप आरसीएनईएच, बारापानी; आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून)
- तटीय कृषि (सीएसएसआरआई, करनाल; सीसीएआरआई, गोवा)
- नैनो टेक्नोलॉजी (आईआईएसएस, भोपाल)
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