बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में आयोजित वार्षिक रबी तिलहन समूह सम्मेलन तथा बीएयू सम्मेलन में महानिदेशक (भाकृअनुप), डॉ. एमएल जाट ने कहा अलसी और कुसुम भविष्य की फसलें

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में आयोजित वार्षिक रबी तिलहन समूह सम्मेलन तथा बीएयू सम्मेलन में महानिदेशक (भाकृअनुप), डॉ. एमएल जाट ने कहा अलसी और कुसुम भविष्य की फसलें

10 सितंबर, 2025, रांची

अपने औषधीय एवं पोषण संबंधी लाभों के लिए प्रसिद्ध अलसी तथा कुसुम को आज, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), रांची में आयोजित वार्षिक रबी तिलहन समूह सम्मेलन - 2025 के पूर्ण सत्र के दौरान डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप), ने "भविष्य की फसलें" बताया।

दो दिवसीय कार्यक्रम में बोलते हुए, डॉ. जाट ने पारंपरिक रूप से कम उपयोग की जाने वाली इन फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा, "अलसी और कुसुम केवल खाद्यान्न फसलें नहीं हैं, ये स्वास्थ्य और कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। अब समय आ गया है कि इन्हें आकर्षक बनाया जाए। लाभ और आर्थिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित इस दुनिया में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी फसलें हर क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होतीं। छोटी फसलें महंगे और उच्च-स्तरीय खाद्य पदार्थों से उत्पन्न स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।"

Linseed and Safflower are Crops of the Future, Says DG (ICAR) Dr ML Jat at BAU Meet Annual Rabi Oilseeds Group Meet concludes at Birsa Agricultural University, Ranchi

डॉ. जाट ने भारत के 1.2 करोड़ हैक्टर परती चावल उत्पादन क्षेत्रों, विशेष रूप से, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम जैसे राज्यों में, सतत गहनता के माध्यम से इन फसलों की खेती के विस्तार की संभावनाओं की ओर इशारा किया। जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी सहनशीलता तथा कम लागत व पानी की आवश्यकता को देखते हुए, अलसी एवं कुसुम किसानों के लिए आशाजनक विकल्प प्रदान करते हैं।

डॉ. जाट ने आगे कहा, "इन फसलों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों और किसानों, दोनों का मनोबल ऊंचा होना चाहिए। ऊंचे मनोबल के साथ, सब कुछ संभव है।"

डॉ. डी.के. यादव, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान), भाकृअनुप ने न केवल उत्पादकता पर बल्कि तेल की मात्रा, तेल और रेशे की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा गहन अनुसंधान के माध्यम से इन फसलों की दोहरे उद्देश्यीय उपयोगिता का पता लगाने पर भी ध्यान केन्द्रित करने के महत्व पर बल दिया।

वर्तमान में, अलसी की औसत राष्ट्रीय उत्पादकता 633 किलोग्राम/हैक्टर है। हालांकि, कई राज्यों में अग्रिम पंक्ति के प्रदर्शनों से 1,000 किलोग्राम/हैक्टर तक उपज प्राप्त हुई है, और अनुसंधान परीक्षणों ने गुणवत्तापूर्ण बीजों, उन्नत कृषि पद्धतियों, बुनियादी ढाँचे के समर्थन तथा अनुकूल नीतियों के साथ इसे 2 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाने की क्षमता आंकी गई है।

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सम्मेलन को संबोधित करने वाले अन्य गणमान्य व्यक्तियों में डॉ. एस.सी. दुबे, कुलपति, बीएयू; डॉ. संजीव गुप्ता, सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन), भाकृअनुप; और डॉ. आर.के. माथुर, निदेशक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद शामिल थे।

डॉ. पी.के. सिंह, निदेशक, अनुसंधान, बीएयू ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, तेलंगाना)

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