4 अगस्त, 2025, नई दिल्ली
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों की कृषि विविधता, न केवल यहाँ की सांस्कृतिक पहचान है बल्कि यह स्थानीय लोगों की आजीविका, पोषण एवं प्राकृतिक अनुकूलन की परंपरा का आधार भी है। जलवायु परिवर्तन एवं आधुनिक कृषि प्रणाली के कारण कई पारंपरिक फसलें धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे समय में इन परंपरागत प्रजातियों का वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण, कानूनी पंजीकरण एवं कृषकों के अधिकारों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल के तहत ‘झुमकिया मंडुवा’ नामक परंपरागत मंडुवा/रागी प्रजाति को भारत सरकार के पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा कृषक किस्म के रूप में 27 मार्च, 2025 को औपचारिक संरक्षण प्रदान किया गया है।
यह प्रजाति, श्री भूपेन्द्र जोशी, ग्राम गली बस्यूरा, जनपद अल्मोड़ा द्वारा गैर सरकारी संस्था लोक चेतना मंच, रानीखेत के माध्यम से प्रस्तुत की गई थी। झुमकिया मंडुवा की औसत परिपक्वता अवधि लगभग 115 दिन है। इस किस्म को मध्यम उर्वरता वाली वर्षा आधारित भूमि में, विशेष रूप से उत्तराखण्ड की पर्वतीय परिस्थितियों में बोया जाता है। झुमकिया मंडुवा के बीजों का रंग तांबे जैसा भूरा एवं सतह खुरदरी है। इसकी बालियों में शाखन, बहु-स्तरीय अंगुली व्यवस्था तथा अर्ध-सघन बनावट जैसी विशिष्टताएँ इसे अन्य तुलनीय किस्मों से स्पष्ट रूप से अलग हैं।
डॉ लक्ष्मी कांत, निदेशक, भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के नेतृत्व में अनुराधा भारतीय, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं श्री जोगेन्द्र बिष्ट, अध्यक्ष, लोक चेतना मंच एवं श्री पंकज चौहान ने झुमकिया मंडुवा के राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस पंजीकरण से संबंधित कृषकों को न केवल इस प्रजाति के उत्पादन एवं विपणन के विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, बल्कि यदि इस किस्म का उपयोग भविष्य में किसी नई किस्म के विकास में किया जाता है, तो उन्हें लाभ साझेदारी और क्षतिपूर्ति का भी संवैधानिक अधिकार प्राप्त होगा। ‘झुमकिया मंडुवा’ का यह पंजीकरण पारंपरिक कृषि धरोहर के संरक्षण की दिशा में एक प्रेरक कदम है, साथ ही यह पर्वतीय कृषकों के ज्ञान, परिश्रम एवं अधिकारों को भी सम्मानित करता है।
(भाकृअनुप-पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली)
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