29 सितम्बर, 2025, अल्मोड़ा
भाकृअनुप–विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (वीपीकेएएस), अल्मोड़ा द्वारा किसानों की आय वृद्धि एवं क्षेत्रीय विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इसी क्रम में संस्थान एवं सतौन स्पाइस ग्रोवर्स एसोसिएशन, कोड़गा, जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश के बीच आज वी.एल. लहसुन-2 प्रजाति के उत्पादन तथा विक्रय हेतु एक औपचारिक समझौता किया गया। यह समझौता पर्वतीय राज्यों के किसानों के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलेगा साथ ही उच्च उपज एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के माध्यम से उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मददगार होगा।
वी.एल. लहसुन-2 एक लंबी अवधि वाली प्रजाति है, जिसे वर्ष 2012 में केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति (सी.वी.आर.सी.) द्वारा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों के लिए अधिसूचित किया गया था। इस किस्म की प्रमुख विशेषताओं में बल्ब में 10 से 15 कलियों की उपस्थिति, बल्ब का औसत भार 30 से 38 ग्राम, भंडारण के दौरान न्यूनतम हानि तथा उच्च उपज क्षमता शामिल हैं। औसत बल्ब उपज निम्न एवं मध्य-पहाड़ी क्षेत्रों में 150 कुन्तल प्रति हैक्टर तक तथा मध्य-पहाड़ी क्षेत्रों से ऊपर 250 कुन्तल प्रति हैक्टर तक पाई गई है। इस किस्म का एक और महत्वपूर्ण गुण यह है कि यह बैंगनी धब्बा एवं स्टेमफिलियम ब्लाइट जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति सहनशीलता रखती है, जो कि पर्वतीय क्षेत्रों में लहसुन उत्पादन को प्रभावित करती रही है।
उक्त समझौते पर संस्थान की ओर से डॉ. लक्ष्मी कान्त, निदेशक, वीपीकेएएस, डॉ. निर्मल हेडाऊ, अध्यक्ष, आई.टी.एम.यू. तथा डॉ. बी.एम. पाण्डे, विभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन विभाग ने हस्ताक्षर किया। वहीं स्पाईस ग्रोवर्स एसोसिएशन की ओर से श्री भगवान सिंह, अध्यक्ष एवं श्री सुरेश चन्द्र ने समझौते पर हस्ताक्षर किया।
डॉ. कान्त ने एसोसिएशन के सदस्यों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी और कहा कि “संस्थान सदैव किसानों की बेहतरी और पर्वतीय कृषि की उन्नति के लिए समर्पित है। उन्होंने कहा संस्थान का यह प्रयास पर्वतीय राज्यों में किसानों की स्थिति सुदृढ़ करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। साथ ही वी.एल. लहसुन-2 जैसी प्रजातियों के प्रसार से न केवल किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी बल्कि पर्वतीय कृषि उत्पादों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी सुदृढ़ होगी।”
श्री सिंह ने इस अवसर पर कहा कि “संस्थान की यह प्रजाति किसानों की आय वृद्धि में एक मील का पत्थर सिद्ध होगी। इससे न केवल उत्पादकता में वृद्धि होगी, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले लहसुन की उपलब्धता से किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होगा।
(स्रोतः भाकृअनुप–विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा)
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