17 दिसंबर, 2025, अविकानगर
आज क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) तथा भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, ने मिलकर “गुणवत्ता यात्रा: एनबीएएल मान्यता पर जागरूकता कार्यक्रम” हेतु एक दिन की वर्कशॉप का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का मकसद रिसर्च संस्थानों में लेबोरेटरी क्वालिटी सिस्टम एवं नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज (एनएबीएल) मान्यता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।
प्रोफेसर (डॉ.) त्रिभुवन शर्मा, वाइस-चांसलर, राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज, जोबनेर, जयपुर, इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। अपने संबोधन में, उन्होंने राज्य और देश दोनों के सकल घरेलू उत्पाद में पशुधन क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हालांकि पशु एवं पशु चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान ने कई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल किया हैं, लेकिन लेबोरेटरी मान्यता पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। इसलिए उन्होंने अनुसंधान संस्थानों और प्रयोगशालाओं से गुणवत्ता आश्वासन एवं वैज्ञानिक परिणामों की विश्वसनीयता को मजबूत करने के लिए मान्यता को प्राथमिकता देने का आग्रह किया।

डॉ. अरुण कुमार तोमर, निदेशक, भाकृअनुप-सीएसडब्ल्यूआरआई, ने मुख्य अतिथि और प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। अपने संबोधन में, उन्होंने प्रयोगशाला परिणामों की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति सुनिश्चित करने में एनएबीएल मान्यता के महत्व पर जोर दिया, और आश्वासन दिया कि भाकृअनुप-सीएसडब्ल्यूआरआई की प्रयोगशालाएं जल्द ही मान्यता प्रक्रिया शुरू करेंगी।
डॉ. भूमि राजगुरु, संयुक्त निदेशक, एनएबीएल, क्यूसीआई, अहमदाबाद, मुख्य वक्ता थीं तथा उन्होंने एनएबीएल मान्यता, इसके फ्रेमवर्क, लाभ और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी।
इस वर्कशॉप में भाकृअनुप संस्थानों तथा राजस्थान भर के राज्य कृषि और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों की विभिन्न प्रयोगशालाओं के लगभग 70 शोधकर्ताओं और फैकल्टी सदस्यों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम ने वैज्ञानिकों और प्रयोगशाला पेशेवरों को गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों और मान्यता प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक करने के लिए एक मूल्यवान मंच प्रदान किया, जिससे पशुधन क्षेत्र में अनुसंधान और परीक्षण बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में योगदान मिला।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर)







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