15 मार्च, 2019, कोलकाता
भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता ने आज पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बेलगछिया, कोलकाता में 'पौधों की विविधता और किसानों के अधिकारों की क्षेत्रीय कार्यशाला' का आयोजन किया।
डॉ. रणधीर सिंह, अतिरिक्त महानिदेशक, (एई), भाकृअनुप, नई दिल्ली ने विशेष रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए किसानों की किस्मों के प्रलेखन के महत्व के बारे में किसानों को जागरूक किया। यह किसानों को आर्थिक लाभ प्रदान करने में मदद करेगा और अन्य किसानों द्वारा बीज का उपयोग भी। डॉ. सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से 5,000 किस्मों के पंजीकरण को भी रेखांकित किया।
प्रो. पूर्णेंदु बिस्वास, कुलपति, पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बेलगछिया, कोलकाता ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की।
डॉ. आर. सी. अग्रवाल, रजिस्ट्रार जनरल, पीपीवी और एफआरए, नई दिल्ली ने पीपीवी और एफआर के भविष्य के दिशा-निर्देशों के बारे में बताया। उन्होंने किसानों की किस्मों के पंजीकरण की विस्तृत प्रक्रिया के बारे में बताते हुए बौद्धिक संपदा के अधिकार को भी महत्त्व दिया।
श्री आर. एस. सेंगर, डिप्टी रजिस्ट्रार, पीपीवी और एफआरए, नई दिल्ली ने पीपीवी और एफआर की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने किसानों के अधिकारों की कानूनी सुरक्षा, किसानों की विविधता में गुणात्मक वृद्धि और किसी भी निजी कंपनी द्वारा किसानों की विविधता के दुरुपयोग से बचाव पर जोर दिया।
प्रो. पी. के. राउल, डीन, ओयूएटी ने ओडिशा के परिप्रेक्ष्य में पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों के संरक्षण के बारे में जानकारी दी।
डॉ. एस. एस. सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता ने भारत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में देशी किसानों की किस्मों के संरक्षण को आगे बढ़ाने के बारे में बताया।
समय पर संरक्षण और पंजीकरण न करने के कारण स्वदेशी पौधों की किस्मों और पशु नस्लों के अधिकार को खोने के कई उदाहरणों का हवाला देते हुए, डॉ. सिंह ने वर्ष 2013-14 से बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के केवीके के माध्यम से किसानों के बीच बड़ी जागरूकता पैदा करने के लिए भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता के साथ पीपीवी और एफआरए के सहयोग पर प्रकाश डाला।
डॉ. पी. पी. पाल, प्रधान वैज्ञानिक और नोडल अधिकारी, भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता ने इससे पहले अपने स्वागत भाषण में क्षेत्रीय कार्यशाला के मूल उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों से भविष्य में अनुसंधान के प्रयासों के लिए स्वदेशी पौधों की किस्मों को संरक्षित करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर किसानों के लाभ के लिए 3 तकनीकी सत्र भी आयोजित किए गए।
ओडिशा और पश्चिम बंगाल के 250 से अधिक प्रगतिशील किसानों, पीपीवी और एफआर अधिकारियों, भाकृअनुप-वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालय के शिक्षकों आदि ने क्षेत्रीय कार्यशाला में अपनी भागीदारी दर्ज की।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)
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