लाहौल-स्पीति में आदिवासी कृषि-उद्यमियों को मज़बूत बनाना: भाकृनुप–सीएसडब्ल्यूआरआई ने जमीनी स्तर पर इनोवेशन ड्राइव की शुरू

लाहौल-स्पीति में आदिवासी कृषि-उद्यमियों को मज़बूत बनाना: भाकृनुप–सीएसडब्ल्यूआरआई ने जमीनी स्तर पर इनोवेशन ड्राइव की शुरू

13 नवंबर, 2025, लाहौल-स्पीति

‘जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा 2025’ के तहत, भाकृअनुप–केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान , नॉर्थ टेम्परेट रीजनल स्टेशन, गार्सा ने लाहौल-स्पीति के टिंगराट गांव में एक जनजातीय कृषि उद्यमिता बैठक आयोजन की। इस प्रोग्राम में 60 गांववालों ने हिस्सा लिया, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे, जिसका फोकस ग्रामीण एंटरप्रेन्योरशिप को मज़बूत करना, वैल्यू एडिशन को बढ़ावा देना और आदिवासी समुदायों के बीच सस्टेनेबल आजीविका को सपोर्ट करना था। यह इवेंट किसानों, सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स (एसएचजी), और कृषि उद्यम स्टार्टअप को जोड़ने के लिए एक प्लेटफॉर्म के तौर पर काम आया ताकि उद्यम के विकास के नए मौके तलाशे जा सकें।

इस मीटिंग में वैज्ञानिक और तकनीकी एक्सपर्ट्स को प्रोग्रेसिव किसानों, महिला एसएचजी मेंबर्स और लोकल एंटरप्रेन्योर्स के साथ बातचीत करने का मौका मिला। चर्चा का मुख्य विषय खेती-बाड़ी से जुड़ी उद्यमी बनने के लिए संभावित रास्ते पहचानना एवं आदिवासी उपज के लिए मार्केट लिंकेज को बेहतर बनाना था।

एक खास बात ‘कंगला लेडीज़’ के साथ बातचीत थी, जो टिंगराट गांव की एक उत्साही महिलाओं की एसएचजी है, जिसकी हेड सुश्री रिगज़िन हैं। यह ग्रुप सी बकथॉर्न और जंगली गुलाब जैसे स्थानीय स्रोत सेकई तरह के मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाता है, जिसमें जैम, जूस, सूखे पाउडर, हर्बल चाय की पत्तियां और गुलाब से बनी चीजें शामिल हैं। एनटीआरएस टीम ने उनकी प्रोसेसिंग यूनिट का दौरा किया तता आय बढ़ाने के लिए देसी पौधों के उनके नए इस्तेमाल की तारीफ की।

ग्रुप की मार्केट पहुंच तथा बिजनेस बढ़ाने के लिए, एनटीआरएस ने एसएचजी तथा कुल्लू में टीओएसएच प्रोडक्ट्स के मालिक मिस्टर विनोद, जो लाहौल से हर्बल और फलों से बने प्रोडक्ट्स के जाने-माने खरीदार हैं, के बीच एक नया लिंकेज बनाया। इस पार्टनरशिप से उत्पाद के मानकीकरण को आगे बढ़ाने, ब्रांडिंग को बढ़ाने तथा लोकल इलाके से आगे भी सस्टेनेबल मार्केट चैनल बनाने की उम्मीद है।

इसके अलावा, कम्युनिटी हेतु एक पशुधन हेल्थ कैंप भी लगाया गया। भेड़ एवं बकरियों की आम हेल्थ तथा पैरासाइट इन्फेक्शन के लिए स्क्रीनिंग की गई, लक्षण वाले मामलों का इलाज किया गया, और आगे की नैदानिक जांच हेतु मल और खून के सैंपल लिया गया। इस पहल का मकसद बीमारी के फैलाव पर नज़र रखना और झुंड के हेल्थ मैनेजमेंट को बेहतर बनाने में मदद करना है।

यह प्रोग्राम एंटरप्रेन्योरशिप, वैल्यू एडिशन और मज़बूत पशुधन हेल्थ सर्विस के ज़रिए आदिवासी समुदायों को मज़बूत बनाने की दिशा में एक अच्छा कदम था।

(स्रोत: भाकृअनुप–केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर)

×