कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार महत्वपूर्ण स्तंभ हैं – शिवराज सिंह चौहान
कृषि उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने में अनुसंधान की अहम भूमिका है – शिवराज सिंह चौहान
हमारा प्रयास है कि सभी संस्थाएं एक दिशा में काम करें, ताकि समान लक्ष्य प्राप्त हो सके – केन्द्रीय कृषि मंत्री
कृषि विकास दर को 5% बनाए रखने का लक्ष्य – श्री चौहान
एक राष्ट्र – एक कृषि – एक टीम के रूप में काम करने के लिए कृतसंकल्प – शिवराज सिंह चौहान
जीनोम एडिटिंग के जरिए दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर जोर – केन्द्रीय मंत्री चौहान
आधुनिक तकनीक के जरिए लक्ष्य हासिल करने पर जोर – शिवराज सिंह चौहान
20 मई, 2025, नई दिल्ली
कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा भाकृअनुप संस्थानों के निदेशकों के वार्षिक सम्मेलन के अवसर पर केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने और इनपुट लागत कम करने में अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संस्थानों को एक दिशा में मिलकर काम करना चाहिए और दोहराया कि 5% कृषि विकास दर बनाए रखना एक प्रमुख लक्ष्य है।

मीडिया से बात करते हुए कृषि मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। लगभग 50% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, जो सकल घरेलू उत्पाद में 18% का योगदान देती है। उन्होंने पुष्टि की कि भविष्य में भी कृषि अर्थव्यवस्था का केन्द्र बनी रहेगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का "विकसित भारत" का दृष्टिकोण "विकसित कृषि और समृद्ध किसान" के सिद्धांत पर दृढ़ता से आधारित है, जो हमारे मूल मार्गदर्शक दर्शन के रूप में कार्य करता है।
कृषि मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि सम्मेलन के दौरान हुई चर्चाएँ विकसित कृषि और किसान समृद्धि पर केंद्रित हैं, जिसमें शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार बुनियादी स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय, राज्य कृषि विभाग, 113 भाकृअनुप संस्थान और 731 कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके) सभी इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि ये सभी संस्थान एक राष्ट्र - एक कृषि - एक टीम के दृष्टिकोण से निर्देशित होकर एकजुट होकर काम करें। कृषि क्षेत्र में 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, संबद्ध क्षेत्रों सहित लगातार 5% की वृद्धि दर बनाए रखना आवश्यक है।
श्री चौहान ने कहा कि सम्मेलन के दौरान हुई चर्चाओं से यह निष्कर्ष निकला कि यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है और कृषि में 5% की वृद्धि दर बनाए रखना संभव है। उन्होंने बताया कि देश की 93% भूमि पर खाद्यान्न की खेती होती है, जबकि दालों और तिलहनों की वृद्धि दर लगभग 1.5% पर कम है। राज्यों में उत्पादकता में भी व्यापक असमानताएँ हैं, उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में मक्का की पैदावार अधिक है, लेकिन उत्तर प्रदेश में कम है। इस अंतर को पाटने के लिए, विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता के स्तर को कम से कम एक समान औसत पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए विभिन्न कृषि संस्थानों और विभागों की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है।

उन्होंने आगे कहा कि अगर भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, तो अकेले कृषि क्षेत्र को 1 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देना होगा। इसे हासिल करने के लिए, इसी के अनुसार लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हैं। वर्तमान में, कृषि निर्यात लगभग 6% है, जिसे 20% तक बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करने पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने प्रयोगशाला अनुसंधान और किसानों के बीच की खाई को पाटने के महत्व को रेखांकित किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि अनुसंधान के परिणाम व्यावहारिक और सीधे उनके लिए फायदेमंद हों।
मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में भूमि जोत पहले से ही छोटी है और लगातार घटती जा रही है। 2047 तक, औसत भूमि जोत घटकर 0.6 हैक्टर रह जाने की उम्मीद है। ऐसे में, केवल खाद्यान्न उत्पादन ही पर्याप्त नहीं होगा, और विविधीकरण आवश्यक होगा। इसमें मधुमक्खी पालन, पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी और अन्य संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल है, जिन पर वर्तमान में सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है।
श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस वर्ष के बजट में नए जीन बैंक के निर्माण के लिए धनराशि आवंटित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हाल ही में जीनोम एडिटिंग के माध्यम से चावल की दो नई किस्में विकसित की गई हैं, और इसी तकनीक का उपयोग करके सोयाबीन, दालें, उड़द (काला चना), चना (छोले) और अरहर (कबूतर मटर) का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी इसी तरह का काम चल रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रति हैक्टर न्यूनतम पानी से अधिकतम उपज प्राप्त करने जैसे मुद्दों पर गहनता से चर्चा की जा रही है। अल्पकालिक (एक वर्ष के भीतर) और दीर्घकालिक उपलब्धियों के लिए समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हैं और इस दिशा में तेजी से काम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि ज्ञान प्रबंधन निदेशालय, नई दिल्ली)
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