6 नवंबर, 2025, असम
जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा 2025 आयोजन के मुख्य भाग के तौर पर, भाकृअनुप-राष्ट्रीय प्राकृतिक रेशा अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कोलकाता ने केवीके दीमा हसाओ एवं भाकृअनुप-अटारी, असम के साथ मिलकर आज असम के दीमा हसाओ के हाफलोंग में दो दिन का ‘जनजातीय कृषक सम्मेलन-सह-प्रदर्शन’ शुरू किया। यह कार्यक्रम भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर मनाया गया और इसका मकसद आदिवासी समुदायों के बीच प्राकृतिक रेशा से आजीविका के मौकों को बढ़ावा देना और साथ ही देसी तकनीक के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।

श्री देबोलाल गोरलोसा, मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम), दीमा हसाओ ऑटोनॉमस काउंसिल (डीएचएसी), इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थे और उन्होंने हाफलोंग इलाके में आदिवासी किसानों की रोज़ी-रोटी को बेहतर बनाने की अहमियत पर ज़ोर दिया।
डॉ. डी.बी. शाक्यवार, निदेशक, भाकृअनुप-नीनफेट, कोलकाता, ने गेस्ट ऑफ़ ऑनर के तौर पर लोगों को संबोधित किया तथा आदिवासियों की इनकम बढ़ाने में एरी सिल्क एवं अनानास के पत्तों के फाइबर की क्षमता पर ज़ोर दिया। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर एवं असम जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में टिकाऊ प्राकृतिक रेशे उद्यम को बढ़ावा देने के लिए संस्थान की चल रही पहलों पर भी ज़ोर दिया।
उद्घाटन सत्र में इस इलाके के रिच नेचुरल रिसोर्स, खासकर एरी सिल्क और अनानास की खेती पर ज़ोर दिया गया, जिसमें दीमा हसाओ और कार्बी आंगलोंग के आदिवासी इलाकों में बहुत ज़्यादा पोटेंशियल है। स्पीकर्स ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इतनी ज़्यादा मात्रा के बावजूद, अनानास के पत्तों के फाइबर का इस्तेमाल कम होता है, और पारंपरिक आदिवासी बुनाई के तरीकों को तकनीकी, प्रशिक्षण तथा मार्केट लिंकेज तक बेहतर पहुंच की ज़रूरत है।

सम्मेलन में 500 से ज़्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिसमें वैज्ञानिक, विभिन्न विभाग सेजुड़े लोग, आदिवासी किसान, उद्यमी, एफपीओ/एफपीसी के प्रतिनिधि और लोकल युवा शामिल थे। पहले दिन का अंत एक इंटरैक्टिव फीडबैक सेशन के साथ हुआ, जहाँ पार्टिसिपेंट्स ने फाइबर-बेस्ड माइक्रो-एंटरप्राइजेज को अपनाने में गहरी दिलचस्पी दिखाई।
यह कार्यक्रम जनजातीय गौरव दिवस 2025 की असली भावना को दिखाता है, जिसमें भगवान बिरसा मुंडा की विरासत का सम्मान किया गया और आत्मनिर्भरता, टिकाऊपन और आदिवासी गौरव के आदर्शों को मज़बूत किया गया।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय प्राकृतिक रेशा अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कोलकाता)







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