एसडीएफ और उसके सहयोगियों ने दक्षिण एशिया में लघु-स्तरीय मत्स्य पालन एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए भाकृअनुप के नेतृत्व में क्षेत्रीय जलीय आजीविका परियोजना की शुरू

एसडीएफ और उसके सहयोगियों ने दक्षिण एशिया में लघु-स्तरीय मत्स्य पालन एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए भाकृअनुप के नेतृत्व में क्षेत्रीय जलीय आजीविका परियोजना की शुरू

7 अगस्त, 2025, कोलंबो, श्रीलंका

सार्क विकास कोष (एसडीएफ) ने पाँच सार्क सदस्य देशों के राष्ट्रीय संस्थानों और तकनीकी एजेंसियों के सहयोग से कोलंबो, श्रीलंका में जलीय आजीविका परियोजना का आधिकारिक शुभारंभ किया, जिसका उद्देश्य लघु-मछली पालन को मज़बूत करना तथा पूरे क्षेत्र में पोषण सुरक्षा में सुधार लाना है।

मुख्य अतिथि के रूप में रामलिंगम चंद्रशेखर, मत्स्य पालन मंत्री, श्रीलंका इस शुभारंभ समारोह में उपस्थित रहे। यह कार्यक्रम सतत जलीय कृषि के माध्यम से ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने के एक प्रमुख क्षेत्रीय प्रयास का प्रतीक था। इस तीन-वर्षीय पहल में कुल 3.97 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश शामिल है, जिसमें एसडीएफ से 3.23 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान और 739,109 अमेरिकी डॉलर का वस्तु-आधारित सह-वित्तपोषण शामिल है। इससे बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका के 120,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों को सीधा लाभ होगा, जिसमें से 30% महिलाएं शामिल हैं।

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Minister Chandrasekar described AquaLivelihood as “a transformative journey toward a resilient future for small-मंत्री चंद्रशेखर ने जलीय आजीविका को "लघु-स्तरीय किसानों के लिए लचीले भविष्य की ओर एक परिवर्तनकारी यात्रा" बताया।

"जलकृषि विकास के माध्यम से सार्क क्षेत्र में लघु-स्तरीय मत्स्य किसानों की आजीविका में वृद्धि तथा ग्रामीण जनता की पोषण सुरक्षा" शीर्षक वाली इस परियोजना का नेतृत्व भाकृअनुप-केन्द्रीय मीठाजल जलीय कृषि संस्थान, भुवनेश्वर द्वारा मत्स्य विभाग, बांग्लादेश; राष्ट्रीय जलीय कृषि अनुसंधान एवं विकास केन्द्र, भूटान; केन्द्रीय मत्स्य संवर्धन एवं संरक्षण केन्द्र, नेपाल; और राष्ट्रीय जलीय कृषि विकास प्राधिकरण, श्रीलंका के साथ साझेदारी में किया जा रहा है।

यह परियोजना दो प्रमुख क्षेत्रीय प्राथमिकताओं: लघु-स्तरीय जलीय कृषि किसानों की आजीविका में वृद्धि और स्थायी मत्स्य उत्पादन प्रणालियों के माध्यम से कुपोषण से निपटने पर केन्द्रित है। इसे तीन रणनीतिक घटकों के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा:

1. सर्वेक्षण और प्रौद्योगिकी पहचान - इनपुट, चारा, बीज का मानचित्रण तथा समावेशी प्रथाओं को बढ़ावा देना।

2. बुनियादी ढाँचा विकास - स्थानीय उत्पादन को मज़बूत करने के लिए पायलट-स्तरीय फ़ीड मिलों और मछली पालन केन्द्रों की स्थापना।

3. क्षमता निर्माण और ज्ञान साझाकरण - सीमा पार प्रशिक्षण, कृषि प्रदर्शन, और लैंगिक समानता एवं क्षेत्रीय ज्ञान आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।

भारत की नेतृत्वकारी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. जयकृष्ण जेना, उप-महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान), भाकृअनुप ने कहा कि यह परियोजना मत्स्य पालन क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग, नीति संरेखण एवं  समावेशी विकास के लिए एक साझा प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

डॉ. जे.एम. अशोक, महानिदेशक, एनएक्यूडीए, श्रीलंका ने इसे आय के अवसरों का विस्तार करने और राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पोषण लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए एक समयोचित हस्तक्षेप बताया।

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दक्षिण एशिया में मछली प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत रहा है, जो बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों में पशु प्रोटीन सेवन का 60% से अधिक है। इस क्षेत्र में जलीय कृषि के - नेपाल में 11%, बांग्लादेश में 5.4% की वृद्धि उल्लेखनीय रही है साथ ही पिछले एक दशक में भारत के कृषि सकल घरेलू उत्पाद और ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस शुभारंभ के बाद, सभी पाँच भागीदार देशों के साझेदारों के साथ एक दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई ताकि रणनीतियों को संरेखित किया जा सके तथा पूरे क्षेत्र में समन्वित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय मीठा जल जलीय कृषि संस्थान, कौशल्यागंगा, भुवनेश्वर)

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