कोच्चि में भाकृअनुप-केन्द्रीय समुद्री मत्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अरब सागर में गहरे समुद्र की स्क्विड की एक नई प्रजाति खोजी है, जो विश्व स्तर पर दुर्लभ जीनस टैनिंगिया की दूसरी कन्फर्म प्रजाति है। इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम टैनिंगिया सिलासी (इंडियन ऑक्टोपस स्क्विड) है, जिसका औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय जर्नल मरीन बायोडायवर्सिटी में वर्णन किया गया है।
यह नमूना कोल्लम तट से लगभग 390 मीटर की गहराई से इकट्ठा किया गया था। 45 सेमी लंबी (डॉर्सल मेंटल लंबाई) यह स्क्विड ऑक्टोपोटिथिडे परिवार से संबंधित है, जिसके वयस्क अपने विशिष्ट टेंटेकल्स की कमी के लिए जाने जाते हैं, हालांकि वे असली गहरे समुद्र की स्क्विड हैं।
इस रिसर्च का नेतृत्व डॉ. गीता ससिकुमार, प्रधान वैज्ञानि तथा डॉ. साजिकुमार, तकनीकी अधिकारीके ने किया।

अब तक, अटलांटिक महासागर में पाई जाने वाली टैनिंगिया डेने इस जीनस की एकमात्र ज्ञात प्रजाति थी। पहले, टैनिंगिया जीनस की स्क्विड को मोनोटाइपिक माना जाता था। डीएनए बारकोडिंग से अटलांटिक प्रजाति से 11% से अधिक जेनेटिक अंतर दिखा, जिससे यह नमूना एक अलग प्रजाति के रूप में कन्फर्म हुआ।
हालांकि इसे 'ऑक्टोपस स्क्विड' कहा जाता है, लेकिन यह वास्तव में एक स्क्विड है जिसमें केवल आठ भुजाएं होती हैं और इसमें दो लंबे टेंटेकल्स नहीं होते हैं जो आमतौर पर अन्य स्क्विड प्रजातियों में देखे जाते हैं। इस परिवार के सदस्य बड़े आकार के भी हो सकते हैं, अटलांटिक प्रजाति 2.3 मीटर (7.5 फीट) तक लंबी हो सकती है और इसका वजन लगभग 61.4 किलोग्राम होता है।
इस प्रजाति का नाम प्रसिद्ध समुद्री जीवविज्ञानी डॉ. ई. जी. सिलास के सम्मान में रखा गया है, जो भाकृनुप-सीएमएफआरआई के पूर्व निदेशक और केरल कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे और भारत में सेफलोपॉड रिसर्च के अग्रणी थे।
दुनिया भर में स्क्विड की लगभग 400 अलग-अलग प्रजातियों का वर्णन किया गया है, जो उथले तटीय क्षेत्रों से लेकर गहरे समुद्र की खाइयों तक समुद्री वातावरण की एक विस्तृत श्रृंखला में रहती हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय समुद्री मत्स्यिकी अनुसंधान संस्थान)







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