ब्लू रिवोल्यूशन 2.0 – अवसरों का महासागर: भाकृअनुप-आईआईडब्ल्यूसी की ओर से विश्व मत्स्य दिवस का संदेश

ब्लू रिवोल्यूशन 2.0 – अवसरों का महासागर: भाकृअनुप-आईआईडब्ल्यूसी की ओर से विश्व मत्स्य दिवस का संदेश

21 नवंबर, 2025, देहरादून

विश्व मत्स्य दिवस 2025 के अवसर पर, भाकृअनुप–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून, ने डॉल्फिन पीजी इंस्टीट्यूट, देहरादून, के सहयोग से भारत की बढ़ती मत्स्य पालन क्षमता एवं उभरते अवसरों का जश्न मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया।

एक विशेष लेक्चर में भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र की तेज ग्रोथ पर प्रकाश डाला गया और इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ब्लू रिवोल्यूशन 2.0 युवा पीढ़ी के लिए, खासकर आजीविका, उद्यमिता एवं प्रोफेशनल तरक्की के मामले में, 'अवसरों का महासागर' प्रदान करता है। इस सेशन में मत्स्य पालन शिक्षा और कौशल को मजबूत करने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) तथा एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) के क्षमता-निर्माण प्रयासों की प्रासंगिकता पर ज़ोर दिया गया।

लेक्चर में भारत के समृद्ध और विविध जलीय संसाधनों – जिसमें नदियाँ, जलाशय, वेटलैंड्स और समुद्री इकोसिस्टम शामिल हैं – और उनकी अपार जैव विविधता को दिखाया गया। कैप्चर फिशरीज़ और एक्वाकल्चर को बदलने वाले प्रमुख तकनीकी नवाचारों पर चर्चा की गई, साथ ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) और मत्स्य पालन तथा एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआईडीएफ) जैसी सरकारी पहलों के स्थायी क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान पर भी बात हुई। यह भी बताया गया कि मत्स्य पालन क्षेत्र वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के कई अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है।

Blue Revolution 2.0 – Oceans of Opportunity: World Fisheries Day Message from ICAR–IISWC

ब्लू रिवोल्यूशन 1.0 के दौरान हासिल की गई प्रगति की समीक्षा की गई, जिसमें 1950 में 0.7 मिलियन टन से 2014 में 9.6 मिलियन टन और 2025 में 19.5 मिलियन टन तक मछली उत्पादन में भारत की वृद्धि का विवरण दिया गया। ब्लू रिवोल्यूशन 2.0 के विज़न की रूपरेखा तैयार की गई, जिसमें समुद्री मत्स्य पालन को मज़बूत करने, अंतर्देशीय एक्वाकल्चर का विस्तार करने एवं जल-गुणवत्ता सेंसर, जलीय बायोमास निगरानी उपकरण, बायोफ्लॉक तकनीक, रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएसृ), मूल्य-संवर्धन विधियों और फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने के लिए नवाचारों जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

छात्रों और फैकल्टी ने सेमिनार में सक्रिय रूप से भाग लिया और मत्स्य पालन क्षमता और भविष्य के अवसरों पर एक इंटरैक्टिव चर्चा में शामिल हुए। कार्यक्रम में लगभग 50 ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के साथ-साथ फैकल्टी सदस्यों ने भाग लिया, जिन्हें विस्तृत तकनीकी जानकारियों से फायदा हुआ।

(स्रोत: भाकृअनुप–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून)

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