आनन्द कृषि विश्वविद्यालय (एएयू), आनन्द ने तरल जैव उर्वरकों का फॉर्मूला तैयार किया है जो रासायनिक उर्वरकों का सुरक्षित एवं पर्यावरण अनुकूल विकल्प है। तरल जैव उर्वरक (एलबीएफ) में उपयोगी सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो वातावरण से नाइट्रोजन के अवशोषण को बढ़ाते हैं और अघुलनशील फॉस्फेट को घुलनशील बना उसे पौधों को उपलब्ध कराते हैं। विश्वविद्यालय द्वारा 'अनुभव तरल जैव उर्वरक' के नाम से एलबीएफ किसानों को बेचा जा रहा है। अनुभव एलबीएफ देशी जीवाणुओं अर्थात एजोटोबैक्टर क्रूकोक्सम, अजोस्पिरिलम लाइपोफेरम और बैसिलस कोआगुलन्स पर आधारित है।
किसानों तक इसकी पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से एएयू ने अपनी व्यवसायिक योजना एवं विकास इकाई (बीपीडीयू) द्वारा सरकारी निजी सहभागिता (पीपीपी) के अन्तर्गत एलबीएफ के व्यवसायीकरण का लाइसेंस गुजरात की तीन कम्पनियों को प्रदान किया है। बीपीडीयू, एएयू, आनन्द की भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली की राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेष परियोजना (एनएआईपी) के अन्तर्गत विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित एक विशेष परियोजना है।
कृषि मंत्रालय, गुजरात सरकार के कृषि महोत्सव के दौरान कृषि किट के एक भाग के रूप में एएयू ने 50,000 लीटर एलबीएफ की पूर्ति किसानों में बटवांने के लिए गुजरात सरकार को की है। गुजरात के किसानों ने विभिन्न फसलों जैसे कपास, केला, आलू, गुलाब, हल्दी, पपीता आदि में एलबीएफ के प्रयोग से बेहतर फसल और गुणवत्ता के परिणामों की सूचना दी है।
उत्पादन में वृद्धि व रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कम लागत के रूप में तरल जैव उर्वरक के विशिष्ट लाभ हैं। रासायनिक उर्वरकों के मृदा के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। मृदा के रासायनिक गुणों में परिवर्तन से वह भविष्य में पौधे के विकास में सहायक नहीं रहती है।
पूर्व में, जैव उर्वरक वाहक (ठोस) आधारित होते थे जिनमें वाहक तत्व के रूप में लिग्नाइट का प्रयोग किया जाता था। लिग्नाइट उत्पादन कार्य में लगे मजदूरों के लिए हानिकारक होता है। साथ ही, इन उर्वरकों को केवल 6 माह तक सुरक्षित रखा जा सकता था और इनके परिवहन में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। वहीं दूसरी ओर, एलबीएफ को कम से कम एक वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है, इसके उत्पादन में लगे कामगारों को कोई खतरा नहीं है और इसको आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान भेजा जा सकता है। इसके साथ-साथ, जैविक कृषि के एक भाग के रूप में एलबीएफ का प्रयोग ड्रिप सिंचाई में भी किया जा सकता है।
एलबीएफ के विकास और इसके व्यवसायीकरण के लिए डॉ. आर.वी. व्यास, अनुसंधान वैज्ञानिक (सूक्ष्मजैविकी) और श्रीमती एच.एन. शेलत, सहयोगी अनुसंधान वैज्ञानिक (सूक्ष्मजैविकी) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से ‘प्रशंसा पत्र’ प्रदान किया गया है।
(स्रोतः सहायक संस्था डीएमएपीआर, आनन्द और बीपीडीयू, एएयू से प्राप्त जानकारी के साथ एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, डीकेएमए, आईसीएआर)
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