एनएफएचएस - 4 (राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 2015-16) के मुताबिक, पाँच साल से कम उम्र के बच्चों का 38.4% अविकसित या नाटे कद का (उनके उम्र के हिसाब से बहुत छोटा) है जो इंगित करता है कि देश के आधे बच्चे लंबे समय से कुपोषण के शिकार हैं। मध्य प्रदेश में पोषण की कमी चिंता का एक प्रमुख कारण है। बॉडी मास इंडैक्स (बीएमआई – एन्थ्रोपोमैट्रिक सूचकांक) अर्थात शरीर द्रव्यमान सूचकांक ये दर्शाता है कि लगभग 28.5% महिलाओं में चिरकालिक (chronic) ऊर्जा (पोषण) की कमी है। हालिया खबरों के मुताबिक, होशंगाबाद जिला एम.पी. के कुपोषित जिलों में से एक है, जहाँ 17% उत्तर (पोस्ट) प्रसव मृत्यु दर के बाद लगभग 47% नवजात मृत्यु दर है (आई. सी. डी. एस., होशंगाबाद, 2016 की रिपोर्ट)। लगभग 15% बच्चे जिले में गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं।
पोषण संबंधी कमी की दर को कम करने के लिए, एकीकृत बाल विकास योजना (आई. सी. डी. एस.) अनुसूचित खाद्य कार्यक्रमों के माध्यम से पौष्टिक भोजन प्रदान कर रही है। इन प्रयासों के बावजूद, कुछ बच्चे तीसरे डिग्री (स्तर) तक कुपोषण के चरण में हैं। ऐसे बच्चों को विशेष उपचार और अतिरिक्त पौष्टिक भोजन प्रदान की जाती है। अधिकांश बच्चे ग्रेड-I और ग्रेड-II कुपोषण से पीड़ित हैं।
उपरोक्त पौष्टिक स्थिति के संदर्भ में, आई. सी. ए. आर. – सी. आई. ए. ई. (केंद्रीय कृषि संस्थान), भोपाल जागरूकता शिविरों के माध्यम से, संगोष्ठियों में भाग लेकर (विशेष रूप से अटल बाल पालकों, आई. सी. डी. एस. के अधिकारियों के लिए आयोजित), प्रदर्शनी, पोषण मेला आयोजित करके और एस. एच. जी. (सेल्फ हेल्प ग्रुप) के सदस्यों को सोया खाद्य पदार्थ तैयार करने के लिए ज्ञान और कौशल विकास का प्रशिक्षण देते हुए स्थानीय रूप से उत्पादित सोयाबीन आधारित खाद्य उत्पादों की तकनीक के बारे में जन जागरूकता पैदा कर रहा है, ताकि सोया खाद्य पदार्थ पौष्टिक स्थिति में वृद्धि कर सके।
लागत प्रभावी सोया आधारित खाद्य उत्पादों को तैयार करने के लिए व्यवस्थित प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, सोया आधारित पोषण आहार से मध्य प्रदेश में कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। अलग-अलग ब्लॉक के एस. एच. जी. सदस्य पोषण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कुपोषित आँगनवाड़ी बच्चों को अटल बाल पालकों के माध्यम से इन पौष्टिक उत्पादों को उपलब्ध करा रहे हैं। पिछले 12 महीनों में इन सोया उत्पादों (20 ग्राम सोयासत्तू या 20 ग्राम सोयानट्स या 25 ग्राम सोयाबिस्कुट प्रति दिन) के निरंतर पूरक के बाद कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया।
पिपरिया ब्लॉक: यहाँ 47 आँगनवाड़ी हैं, जिन्हें पिपरिया ब्लॉक के 42 अटल बाल पालकों (सामाजिक कार्यकर्ताओं) ने गोद लिया है। संग्रहित आँकड़ों से पता चलता है कि हमारे कार्यक्रम के हस्तक्षेप से पहले मार्च 2017 के महीने में 620 कुपोषित बच्चे (ग्रेड -II) उपस्थित थे। नियमित रूप से सोयासत्तू, सोयानट्स और सोयाबिस्कुट जैसे सोया खाद्य पदार्थों की जागरूकता और पूरकता के बाद इन कुपोषित बच्चों में से 46% (286) बच्चों ने हस्तक्षेप अवधि के दौरान वजन प्राप्त किया। 35.6% बच्चे जो ग्रेड-II कुपोषण के शिकार थे, कार्यक्रम के बाद ग्रेड-I कुपोषण की अवस्था में आ गए। जबकि 5.6% (35) बच्चे सामान्य श्रेणी की अवस्था में आ गए। लगभग 23 (3.7%) बच्चों के वजन में कोई बदलाव या कमी नहीं दिखायी दी। जबकि 55 (8.8%) बच्चे अपने विकास पैरामीटर की जाँच के लिए उपलब्ध नहीं थे, क्योंकि वे जगह छोड़ चुके थे।
इटारसी ब्लॉक: इटारसी ब्लॉक में कुल 66 आँगनवाड़ी को 33 अटल बाल पालकों द्वारा गोद लिया गया है। सोया खाद्य पदार्थों के हस्तक्षेप से पहले, 520 बच्चे ग्रेड-II कुपोषण की अवस्था में थे। सोया खाद्य पदार्थों की खपत के बाद, 91% बच्चों ने वजन बढ़ाया, जबकि 5% सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित हो गए। जबकि ग्रेड-III कुपोषण से पीड़ित 168 बच्चों में से लगभग 70% बच्चों ने वजन हासिल किया और 2.3% सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित हो पाए। अन्य स्वास्थ्य कारणों से, 28% बच्चों ने कोई सकारात्मक सुधार नहीं दिखाया।
ग्रामीण होशंगाबाद ब्लॉक: हमारे कार्यक्रम के हस्तक्षेप से पहले, 1206 ग्रेड-II कुपोषित और 100 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे ब्लॉक में थे। सोया आधारित खाद्य उत्पादों की खपत के बाद, 77.6% बच्चों ने अपना वजन बढ़ाया और ग्रेड-I कुपोषण की अवस्था में स्थानांतरित हो गए। 100 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों में से 16 बच्चे स्वस्थ हुए, 8.5% ग्रेड-I कुपोषण की अवस्था में स्थानांतरित हुए और 1.32% सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित हुए। ब्लॉक में 162 आँगनवाड़ी हैं, कुपोषित बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार के लिए 60 अटल बाल पालकों द्वारा ब्लॉक के 162 आँगनवाड़ी को गोद लिया गया।
सोया आधारित खाद्य पदार्थों की पूरकता ने लाभार्थियों के पोषण की स्थिति में सुधार किया है। ब्लॉक के एसएचजी सदस्यों द्वारा अटल बाल पालकों को बेचने के लिए सोया खाद्य पदार्थों की तैयारी से ग्रामीण इलाके में अतिरिक्त आय और रोजगार पैदा हुआ।
(स्रोत: आईसीएआर-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल)
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