'प्रोटोटाइप से लैंडस्केप तक: स्थिरता एवं किसानों की समृद्धि के लिए एक दृष्टिकोण के रूप में आईएफएस' विषय पर विचार-मंथन कार्यशाला का आयोजन

'प्रोटोटाइप से लैंडस्केप तक: स्थिरता एवं किसानों की समृद्धि के लिए एक दृष्टिकोण के रूप में आईएफएस' विषय पर विचार-मंथन कार्यशाला का आयोजन

28 जुलाई, 2025, मेरठ

भाकृअनुप-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम में आज ‘प्रोटोटाइप से लैंडस्केप तक: आईएफएस एक दृष्टिकोण के रूप में स्थायित्व और किसानों की समृद्धि’ विषय पर एक विचार-मंथन कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की अध्यक्षता, डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप) ने की।

इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. ए.के. नायक, उप-महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) भाकृअनुप; डॉ. राघवेन्द्र भट्ट, उप-महानिदेशक (पशु विज्ञान) भाकृअनुप; डॉ. बी.एस. द्विवेदी, सदस्य (एनआरएम), एएसआरबी; डॉ. पी.एस. पांडे, कुलपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर; डॉ. ए.के. शुक्ला, कुलपति, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर; डॉ. ए.के. सिंह, पूर्व कुलपति, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर; और डॉ. ए. वेलमुरुगन, सहायक महानिदेशक (एसडब्ल्यूएम और एएएफ एंड सीसी), भाकृअनुप शामिल थे।

Brainstorming Workshop on ‘Prototype to Landscape: IFS as an Approach for Sustainability and Farmers’ Prosperity Organised

कार्यशाला को विभिन्न भाकृअनुप संस्थानों के सम्मानित निदेशकों और पूर्व निदेशकों के विचार-विमर्श से और समृद्ध बनाया गया, जिन्होंने कृषि-पारिस्थितिकी आधारित आईएफएस रणनीतियों और स्केलिंग दृष्टिकोणों पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की। इनमें डॉ. ओ.पी. यादव, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, डॉ. वी. के. सिंह, भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्कभूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, डॉ. एन.जी. पाटिल, भाकृअनुप-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, डॉ. लक्ष्मी कांत, भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, डॉ. एम.के. वर्मा, भाकृअनुप-केन्द्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, श्रीनगर, डॉ. परवीन कुमार, भाकृअनुप-केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा, डॉ. अनूप दास, भाकृअनुप-पूर्वी क्षेत्र अनुसंधान परिसर, डॉ. डी.एम. हेगड़े, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद और डॉ. बी. गंगवार और डॉ. ए.एस. पंवार, भाकृअनुप-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मेरठ शामिल थे।

समापन संबोधन में, डॉ. जाट ने एक समर्पित कृषि प्रणाली अनुसंधान समुदाय की स्थापना और मौजूदा संस्थागत नेटवर्क से परे आईएफएस शोधकर्ताओं का एक मुख्य समूह विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आईएफएस पर व्यापक मेटाडेटा तैयार करने, मजबूत सांख्यिकीय मॉडल विकसित करने, परिदृश्य विश्लेषण करने और खेत से परिदृश्य स्तर तक अंतर्वाह-बहिर्वाह गतिशीलता के मानचित्रण के महत्व को रेखांकित किया। परिदृश्य स्तर पर आईएफएस के प्रचार और विस्तार में सहायता के लिए सरकारी योजनाओं के अभिसरण पर विशेष जोर दिया गया। उन्होंने कृषि स्थिरता को पर्यावरण और मानव कल्याण के साथ एकीकृत करते हुए 'एक स्वास्थ्य के लिए आईएफएस पर राष्ट्रीय मिशन' शुरू करने की पुरजोर वकालत की। इस अवसर पर, डॉ. एम.एल. जाट ने अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ भाकृअनुप-आईआईएफएसआर के नए संस्थान में द्वार और फार्म सुविधा की आधारशिला रखी।

Brainstorming Workshop on ‘Prototype to Landscape: IFS as an Approach for Sustainability and Farmers’ Prosperity Organised

डॉ. सुनील कुमार, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएफएसआर ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यशाला की पृष्ठभूमि एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए विचार-विमर्श की दिशा निर्धारित की। इस कार्यक्रम में 200 से अधिक हितधारकों, शोधकर्ताओं तथा नीति निर्माताओं ने हाइब्रिड मोड में उत्साहपूर्वक भाग लिया और आईएफएस प्रोटोटाइप को क्रियाशील, स्केलेबल मॉडल में बदलने पर सार्थक चर्चा में योगदान दिया।

कार्यशाला में भाकृअनुप-आईआईएफएसआर द्वारा विकसित 76 एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) मॉडलों को भू-दृश्य स्तर तक उन्नत करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया। प्रमुख रणनीतियों में पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्यांकन, हरित और कार्बन क्रेडिट के ढाँचे, और स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने हेतु भुगतान तंत्र शामिल थे। क्षेत्र-स्तरीय कार्यान्वयन, जैव-भौतिकीय और सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों पर आधारित उद्यम आवंटन मॉडल, सुदृढ़ आँकड़ा प्रणालियाँ, और मापनीय केपीआई के साथ वाटरशेड दृष्टिकोणों के एकीकरण पर ज़ोर दिया गया। मृदा, जल, पशुधन, वानिकी और भूमि उपयोग को सम्मिलित करते हुए एक समग्र आईएफएस ढाँचे की सिफारिश की गई। प्रभावी अभिसरण और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेपों, मौजूदा मॉडलों के मेटा-विश्लेषण और सरकारी योजनाओं के साथ संरेखण की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम)

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