7 जुलाई, 2025, नई दिल्ली
डॉ. स्वामीनाथन ने भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के आंदोलन का नेतृत्व किया: प्रधानमंत्री
डॉ. स्वामीनाथन ने जैव विविधता से आगे बढ़कर जैव-खुशी की दूरदर्शी अवधारणा दी: प्रधानमंत्री
भारत अपने किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार ने किसानों की शक्ति को राष्ट्र की प्रगति की नींव माना है: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली स्थित एनएएससी में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया और उसे संबोधित किया। इस कार्यक्रम का आयोजन एम.एस. स्वामीनाथन अनुसंधान प्रतिष्ठान (एमएसएसआरएफ) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (भाकृअनुप-आईएआरआई) और भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सहयोग से किया था।

प्रोफेसर एम. एस. स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, प्रधानमंत्री ने उन्हें एक दूरदर्शी व्यक्ति बताया जिनका योगदान किसी भी युग से परे है। उन्होंने आगे कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन एक महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने विज्ञान को जनसेवा के माध्यम में बदल दिया। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने अपना जीवन राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने एक ऐसी चेतना जागृत की जो आने वाली सदियों तक भारत की नीतियों और प्राथमिकताओं का मार्गदर्शन करती रहेगी। उन्होंने स्वामीनाथन जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर सभी को शुभकामनाएँ दीं।
डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के साथ अपने कई वर्षों के जुड़ाव को साझा करते हुए, श्री मोदी ने गुजरात की उन शुरुआती परिस्थितियों को याद किया, जहाँ सूखे और चक्रवातों के कारण कृषि को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने प्रोफेसर स्वामीनाथन द्वारा इस पहल में गहरी रुचि दिखाने और खुले दिल से सुझाव देने को याद किया, जिसने इसकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन के साथ हर बातचीत एक सीखने का अनुभव था। उन्होंने प्रोफेसर स्वामीनाथन की एक बात को याद किया, "विज्ञान केवल खोज के बारे में नहीं है, बल्कि परिणाम देने के बारे में है," और उन्होंने पुष्टि की कि उन्होंने अपने काम के माध्यम से इसे साबित किया। श्री मोदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन ने न केवल शोध किया, बल्कि किसानों को कृषि पद्धतियों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी किया।
श्री मोदी ने प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन को भारत माता का सच्चा रत्न बताते हुए इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि उनकी सरकार के कार्यकाल में प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। "डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के अभियान का नेतृत्व किया", प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन की पहचान हरित क्रांति से भी आगे तक फैली हुई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि "डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन का मानना था कि जलवायु परिवर्तन और पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान उन्हीं फसलों में निहित है जिन्हें भुला दिया गया है" साथ ही कृषि में सूखा सहनशीलता एवं नमक सहनशीलता पर प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन फोकस को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन ने उस समय बाजरा या श्री अन्ना पर काम किया था जब उन्हें काफ़ी हद तक नज़रअंदाज़ किया जाता था। श्री मोदी ने याद दिलाया कि वर्षों पहले, प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन ने मैंग्रोव के आनुवंशिक गुणों को चावल में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था, जिससे फसलों को जलवायु के प्रति ज़्यादा प्रतिरोधी बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज, जब जलवायु अनुकूलन एक वैश्विक प्राथमिकता बन गया है, यह स्पष्ट है कि प्रोफेसर स्वामीनाथन की सोच वास्तव में कितनी दूरदर्शी थी।

प्रोफेसर स्वामीनाथन की विरासत को सम्मानित करने के लिए स्थापित एम. एस. स्वामीनाथन खाद्य एवं शांति पुरस्कार के शुभारंभ पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विकासशील देशों के उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाएगा जिन्होंने खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भोजन और शांति का संबंध न केवल दार्शनिक है, बल्कि गहन रूप से व्यावहारिक भी है।
श्री मोदी ने कहा, "भारतीय कृषि की वर्तमान ऊंचाइयों को देखकर, डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन जहाँ कहीं भी होंगे, निश्चित रूप से गर्व महसूस करेंगे।" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत आज दूध, दालों और जूट के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। उन्होंने कहा कि चावल, गेहूँ, कपास, फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है और साथ ही यह भी कहा कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक भी है। प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछले वर्ष भारत ने अब तक का अपना सर्वोच्च खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत तिलहन के क्षेत्र में भी रिकॉर्ड स्थापित कर रहा है, सोयाबीन, सरसों और मूंगफली का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन से प्रेरणा लेते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के वैज्ञानिकों के पास अब इतिहास रचने का एक और अवसर है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वैज्ञानिकों की पिछली पीढ़ी ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की, और इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्तमान ध्यान पोषण सुरक्षा पर केन्द्रित होना चाहिए। जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैव-संवर्धित और पोषण-समृद्ध फसलों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए, श्री मोदी ने कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करने की वकालत की। उन्होंने प्राकृतिक खेती को और अधिक बढ़ावा देने का आग्रह किया और कहा कि इस दिशा में और अधिक तत्परता एवं सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता है।

11 अगस्त, 2024 को भाकृअनुप-आईएआरआई, पूसा परिसर की अपनी यात्रा को याद करते हुए कह कि उन्होंने कृषि प्रौद्योगिकी को प्रयोगशाला से खेत तक ले जाने के लिए गहन प्रयास करने का आग्रह किया था। श्री मोदी ने मई और जून 2025 के महीनों के दौरान "विकसित कृषि संकल्प अभियान" के शुभारंभ पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पहली बार 700 से अधिक जिलों में वैज्ञानिकों की 2,200 से अधिक टीमों ने भाग लिया। 60,000 से अधिक कार्यक्रमों के आयोजन का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इन प्रयासों ने वैज्ञानिकों को लगभग 1.25 करोड़ किसानों से सीधे जोड़ा। उन्होंने किसानों तक वैज्ञानिक पहुँच का विस्तार करने के लिए इस पहल की काफी सराहनीय बताया।
एम.एस. स्वामीनाथन की विरासत का सम्मान करने के लिए, एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) और द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (टीडब्ल्यूएएस) ने संयुक्त रूप से खाद्य एवं शांति के लिए एम.एस. स्वामीनाथन पुरस्कार की शुरुआत की। कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. अदेमोला ए. अदनले और डॉ. कुरैशा अब्दुल करीम, अध्यक्ष, टीडब्ल्यूएएस को यह पुरस्कार प्रदान किया।
यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विकासशील देशों के उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाएगा जिन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान, नीति विकास, जमीनी स्तर पर सहभागिता या स्थानीय क्षमता निर्माण के माध्यम से खाद्य सुरक्षा में सुधार और जलवायु न्याय, समानता तथा कमज़ोर व हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए शांति को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान दिया है।
प्रधानमंत्री ने इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में केन्द्र सरकार द्वारा जारी एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया।
अपने संबोधन में, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि "जहाँ जानवर और कीड़े-मकोड़े केवल अपने लिए जीते हैं, वहीं हमें मनुष्य होने के नाते अपने देश, समाज और व्यापक हित के लिए जीने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन ऐसे ही जीवन का एक ज्वलंत उदाहरण थे।"

श्री चौहान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रो. स्वामीनाथन ने न केवल भारतीय कृषि के परिदृश्य को बदल दिया, बल्कि देश से भुखमरी उन्मूलन के लिए भी अथक प्रयास किया।
मंत्री ने कहा, "भारत में हरित क्रांति के सूत्रधार प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन ने कृषि विज्ञान प्रणाली को इतने प्रभावी ढंग से विकसित किया कि यह आज भी कृषि पद्धतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।"
प्रयोगशाला को भूमि से जोड़ने के बारे में बोलते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि "भारतीय कृषि को सही दिशा में ले जाने के लिए विज्ञान को कृषि के साथ एकीकृत करना आवश्यक है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, वर्तमान में देश भर में कृषि से संबंधित कई पहलों को क्रियान्वित किया जा रहा है।"
डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, अध्यक्ष, एमएसएसआरएफ ने स्वागत संबोधन दिया।
इस कार्यक्रम में डॉ. रमेश चंद, सदस्य, नीति आयोग, श्री देवेश चतुर्वेदी, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (डेयर) और महानिदेशक (भाकृअनुप) तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

सम्मेलन का विषय "सदाबहार क्रांति, जैव-सुख का मार्ग" के दर्शन के माध्यम से, प्रो. स्वामीनाथन सभी के लिए भोजन सुनिश्चित करने के प्रति आजीवन समर्पण को दर्शाता है। यह सम्मेलन वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, विकास पेशेवरों और अन्य हितधारकों को 'सदाबहार क्रांति' के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने पर चर्चा तथा विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करेगा। प्रमुख विषयों में जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन; खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए सतत कृषि; जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलकर जलवायु लचीलापन मजबूत करना; सतत और समतामूलक आजीविका के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का उपयोग; साथ ही युवाओं, महिलाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों को विकासात्मक चर्चाओं में शामिल करना शामिल है।
(भाकृअनुप-कृषि ज्ञान प्रबंधन निदेशालय, नई दिल्ली)
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