भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के दक्षिणी गारो हिल्स जिले में 11 गांवों के किसानों द्वारा वैज्ञानिक फार्म रीतियों और अन्य प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों को अपनाकर अपनी आजीविका को उन्नत बनाया गया है। इसके अलावा, पोल्ट्री एवं बत्तख पालन तथा टिकाऊ जल प्रबंधन करके भी किसानों ने अपनी आय में अतिरिक्त बढ़ोतरी की है। ऐसा आजीविका सुरक्षा के लिए एनएआईपी परियोजना के अंतर्गत पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिए भाकृअनुप के अनुसंधान परिसर, बारापानी के पूर्ण सहयोग के कारण ही संभव हो सका है।
पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिए भाकृअनुप के अनुसंधान परिसर, बारापानीके वैज्ञानिकों द्वारा प्रदान किए गए पर्याप्त प्रौद्योगिकी इनपुट के साथ एसआरआई (चावल सघनीकरण प्रणाली) के तहत खेती में चावल की पैदावार 4.8 टन/हे. पाई गई जबकि पारम्परिक रीति के तहत यह पैदावार केवल 1.5 टन/हे. थी। अधिक उपज गांव शिवबारी, दिपालीपारा, कोंकना तथा जादुगिरी और बांग्ला देश सीमा से सटे सात गांवों में पाई गई जिन्हें एनआईएपी परियोजना के तहत चावल सुधार कार्यक्रम के लिए चुना गया था। अब, इन अधिकांश गांवों में एसआरआई प्रणाली के साथ चावल की खेती की जा रही है और सफलता की कहानियां रची जा रही हैं।
किसानों के खेतों में तीन वर्षों तक की गई कडी मेहनत के बाद, बढ़ी हुई जागरूकता और प्रौद्योगिकी सशक्तिकरण के कारण अधिकांश पिछडे और वंचित किसान अब 'प्रगतिशील किसान' बन गए हैं। मात्र एक एकड़ जमीन से 27 क्विंटल चावल का उत्पादन हासिल करना एक चमत्कार की तरह ही है। स्कूल शिक्षक से किसान बने दिपालीपारा गांव के श्री महेन्द्र हैगन का कहना है कि अपने पूरे जीवन में छोटी कृषि भूमि से हमने कभी भी चावल की इतनी बम्पर उपज हासिल नहीं की। इन्होंने आगे कहा कि एसआरआई प्रणाली का उपयोग करने पर उन्हें धान की खेती में अधिकतम उत्पादन हासिल हुआ।
उद्यमशीलता दृष्टिकोण विकसित होने में किसानी के पेशे को अपनाना एक प्रमुख कदम है, हालांकि, कृषिजोत का मामला भी महत्वपूर्ण है। ऐसे किसान जिनके पास जमीन है, वे बेहतर फसलों की ओर जा सकते हैं जबकि भूमिहीन किसान बकरी पालन, सूअर पालन और सिलाई-कढ़ाई का काम कर सकते हैं।
''मैं दक्षिणी गारो हिल्स में प्रति वर्ष रूपये 1,00,000/- मूल्य की आंगुलिक मछलियों की आपूर्ति कर रहा हूं।'' हालांकि, अधिकांश समयआंगुलिक मछलियों की मांग इतनी ज्यादा होती है कि उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी मांग जिले से और बाहर से भी बढ़ रही है। वर्तमान वर्ष के लिए, मैंने अपने आधे एकड़ के तालाब से रूपये 60,000/- मूल्य की आंगुलिक मछलियां बेचीं। जल्दी ही आपूर्ति आदेश मिलने लगेंगे – ऐसा कहना है प्रगतिशील किसान श्री वाइल्डस्टोन संगमा का जिनके पास गांव दिपालीपारा में 50 एकड़ जमीन है।
''बत्तख पालन छोटे और यहां तक कि भूमिहीन किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय बन सकता है क्योंकि इसमें बहुत कम स्थान और आहार की जरूरत होती है'' – ऐसा कहना है दिपालीपारा गांव की श्रीमती पुष्पांजलि का। इन्होंने आगे बताया कि बत्तख पालन करना पशु पालन के समान ही आसान कार्य है। इसके अलावा, प्रारंभ में मैंने दो वर्षों तक मेहनत की जिसके बाद बत्तख पालन की पहली खेप से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा दिया कि इस कार्य को आसानी से किया जा सकता है।
उमरान आधारित क्षेत्रीय ग्रामीण प्रशिक्षण केन्द्र जो कि एक गैर सरकारी संगठन है तथा एनएआईपी परियोजना में बराबर का भागीदार है, द्वारा भी काफी लंबे समय से इन सीमावर्ती गांवों में कार्य किया जा रहा है। इसके अभी तक के परिणाम संतोषजनक हैं।
(स्रोत : पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिए भाकृअनुप का अनुसंधान परिसर, बारापानी से मिले इनपुट के आधार पर मास मीडिया मोबिलाइजेशन, डीकेएमए पर एनएआईपी मास मीडिया उप-परियोजना)
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