जामताड़ा जिले में लाख की खेती के माध्यम से सुरक्षित आजीविका

जामताड़ा जिले में लाख की खेती के माध्यम से सुरक्षित आजीविका

जामताड़ा जिला भारत के झारखंड राज्य के पिछड़े जिलों में से एक है। यह क्षेत्र पलाश के जंगल से समृद्ध है। वर्षा आधारित इस क्षेत्र में आय का प्रमुख स्रोत कृषि है। यहां पलाश के पेड़ों से सामान्य रूप से ईंधन के लिए लकड़ी और गांव की अन्य बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाता है। पलाश के पेड़ों का आर्थिक रूप से महत्व न समझकर कई किसान इसकी कटाई करने लगे। यह देखते हुए राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) ने अपनी आजीविका सुरक्षा परियोजना के तहत उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से उच्च आजीविका पैदा करने के लिए किसानों को उत्साहित किए जाने की योजना तैयार की। एनएआईपी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, आईसीएआर के हस्तक्षेप के बाद नारायणपुर ब्लॉक के बारामझाडिह गांव तथा जामताड़ा ब्लॉक के दाहाड़ाटोला, चारडिह, रूपाईडिह, सारमुंडु और सिंजोटोला गांव के किसानों ने मात्र एक वर्ष के समय में पलाश के पेड़ से सफलतापूर्वक ब्रूडलाख (लाख का बीज) का उत्पादन एवं विपणन शुरू कर दिया। बारामझाडिह गांव के दस किसानों ने 399 कि.ग्रा. लाख का उत्पादन कर पहली बार 20,000 रुपए अर्जित किए। श्री बालादेव मरांडी और श्री निर्मल मरांडी ने ग्रीष्म ऋतु में लाख की फसल से सात-सात हजार रुपए कमाए। उन्होंने फसल को अक्टूबर 2008 में बोया तथा जुलाई 2009 में काटा। किसानों के इस समूह को अब ‘लाख उत्पादन समूह’ के नाम से जाना जाता है।

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इसी प्रकार से दाहाड़ाटोला, चारडिह, रूपाईडिह, सारमुंडु और सिंजोटोला गांव के 12 किसानों ने भी सफलतापूर्वक 354 कि.ग्रा. लाखबीज का उत्पादन कर 17,700 रुपए अर्जित किए। चारडिह के श्री सुबोध हेमब्रोम और सारमुंडु के श्री बोधी नाथ नामक किसानों ने सम्मानपूर्वक क्रमशः 3600 और 3500 रुपए अर्जित किए। अब यह किसान समूह ‘खुशियाली लाख उत्पादन समूह’, रूपाईडिह के नाम से जाना जाता हैं। एनएआईपी के हस्तक्षेप के बाद लाख उत्पादन से पहले ये किसान पलाश का पेड़ उगाते थे। वहीं अब ये किसान अपने उद्यम को आगे बढ़ाने के लिए स्वयं ब्रूडलाख (लाख का बीज) का उत्पादन कर रहे हैं और साथ ही अन्य किसानों के सामने उदाहरण पेश करने के लिए स्वयं इसका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इस कारण गांव के किसानों ने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पलाश पेड़ की कटौती पर रोक लगा दी क्योंकि अब वे यह मानने लगे हैं कि बेहतर पर्यावरण के लिए इनका संरक्षण जरूरी है। उन्हें इस बात का आभास हो गया कि प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग करके अच्छी कमाई की जा सकती है।

(स्रोत- मास मीडिया मोबलाइजेशन सब-प्रोजेक्ट, एनएआईपी, दीपा और आईआईएनआरजी, रांची)

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