भारत जीनोम-संपादित चावल की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।
नई जीनोम किस्मों में उच्च उत्पादन, जलवायु के प्रति अनुकूलन और जल संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव की क्षमता है।
4 अप्रैल, 2025, नई दिल्ली
मुख्य बातें:
• श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैज्ञानिक अनुसंधान में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।"
• श्री चौहान ने कहा, "प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में कृषि अनुसंधान को नई दिशा दी गई है।"
• श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "यह कृषि क्षेत्र के लिए एक सुनहरा अवसर है।"
• श्री शिवराज सिंह चौहान ने जोर देकर कहा, "ये नई किस्में दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत में अग्रणी भूमिका निभाएगी।"
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मं,त्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज नई दिल्ली के एनएएससी कॉम्प्लेक्स स्थित भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम ऑडिटोरियम में भारत में दो जीनोम-संपादित चावल किस्मों के विकास की घोषणा की। यह वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में एक नई शुरुआत है। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में वैज्ञानिक और किसान शामिल हुए।

इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए, श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत के विकसित राष्ट्र के सपने को साकार किया जा रहा है साथ ही किसान समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं। आज की उपलब्धि स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों से कृषि चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक अपनाने का आह्वान किया था। उनके शब्दों से प्रेरित होकर भाकृनुप के वैज्ञानिकों ने इन नई किस्मों के निर्माण के साथ कृषि के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की है।"
उन्होंने आगे कहा कि इन नई फसलों के विकास से न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। इससे सिंचाई के पानी की बचत होगी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे पर्यावरण पर दबाव कम होगा। यह दोनों लाभ - उत्पादन में वृद्धि तथा पर्यावरण संरक्षण - प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
श्री चौहान ने इस बात पर जोर दिया कि आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, पौष्टिक उत्पादन बढ़ाने और भारत तथा दुनिया दोनों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ भारत को दुनिया की खाद्य टोकरी बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, "हमें गर्व है कि हमारे प्रयासों से सालाना 48,000 करोड़ रुपये के बासमती चावल का निर्यात हो रहा है।"
केन्द्रीय मंत्री ने सोयाबीन, अरहर, तुअर, मसूर, उड़द, तिलहन और दलहनों का उत्पादन बढ़ाने हेतु कदम उठाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
श्री चौहान ने "माइनस 5 और प्लस 10" फॉर्मूला भी पेश किया, जिसमें बताया गया कि इसमें चावल की खेती के क्षेत्र को 5 मिलियन हैक्टर तक कम करना शामिल है, जबकि उसी क्षेत्र में चावल का उत्पादन 10 मिलियन टन बढ़ाना है। इससे दालों एवं तिलहन की खेती के लिए जगह खाली हो जाएगी।
उन्होंने किसानों, खासकर युवा किसानों से उन्नत कृषि तकनीकी अपनाने का आग्रह किया। श्री चौहान ने कहा, "हमें कृषि अनुसंधान को किसानों तक ले जाने की जरूरत है। जब कृषि वैज्ञानिक तथा किसान साथ आएंगे, तो चमत्कार होगा।"

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री, श्री भागीरथ चौधरी ने वर्चुअल माध्यम से वैज्ञानिकों को बधाई दी।
श्री देवेश चतुर्वेदी, सचिव, डीए एंड एफडब्ल्यू, एमओईएफ एंड सीसी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज भाकृअनुप द्वारा घोषित नई किस्में भारतीय कृषि के लिए एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम साबित हो सकती हैं।

डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप) ने मांग आधारित अनुसंधान के महत्व पर जोर दिया और किसानों से उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के बारे में फीडबैक एकत्र करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि अनुसंधान के परिणाम किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार किए जाएं और उन्हें सही समाधान के साथ प्रभावी ढंग से पहुंचाया जाए।

इस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री ने दोनों किस्मों के अनुसंधान में योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया। डॉ. विश्वनाथन सी, डॉ. गोपाल कृष्णन एस, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शिवानी नागर, डॉ. अर्चना वत्स, डॉ. सोहम रे, डॉ. अशोक कुमार सिंह और डॉ. प्रांजल यादव को पूसा डीएसटी 1 चावल पर उनके काम के लिए सम्मानित किया गया। डॉ. सत्येन्द्र कुमार मंगरुठिया, डॉ. आर.एम. सुंदरम, डॉ. आर. अब्दुल फियाज, डॉ. सी.एन. नीरजा, और डॉ. एस.वी. साई प्रसाद को डीआरआर राइस 100 (कमला) के विकास में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
डॉ. देवेन्द्र कुमार यादव, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान), भाकृअनुप, डॉ. आर.एम. सुंदरम, निदेशक, भाकृअनुप-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, डॉ. अशोक कुमार सिंह, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-आईएआरआई तथा डॉ. सी.एच. श्रीनिवास राव, निदेशक, भाकृअनुप-आईएआरआई भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
पृष्ठभूमि:
भाकृअनुप ने भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल किस्में- डीआरआर चावल 100 (कमला) और पूसा डीएसटी 1 चावल विकसित की हैं। इन किस्मों में उच्च उत्पादन, जलवायु अनुकूलता तथा जल संरक्षण के मामले में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है।
इन नई किस्मों को CRISPR-Cas पर आधारित जीनोम-एडिटिंग तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है, जो विदेशी डीएनए को जोड़े बिना जीव की आनुवंशिक सामग्री में सटीक परिवर्तन करता है। सामान्य फसलों के लिए भारत के जैव सुरक्षा नियमों के तहत SDN 1 और SDN 2 प्रकार के जीनों के जीनोम संपादन को मंजूरी दी गई है।
वर्ष 2018 में, भाकृअनुप ने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष के तहत दो प्रमुख चावल किस्मों - सांबा महसूरी और एमटीयू 1010 - को बेहतर बनाने के लिए जीनोम-संपादन अनुसंधान शुरू किया। इस शोध के परिणामस्वरूप दो उन्नत किस्में प्राप्त हुई हैं जो निम्नलिखित लाभ प्रदान करती हैं:
• उपज में 19% की वृद्धि।
• ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% की कमी।
• सिंचाई जल में 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर की बचत।
• सूखे, लवणता और जलवायु तनाव के प्रति बेहतर सहनशीलता।
डीआरआर चावल 100 (कमला) किस्म को भाकृअनुप-आईआईआरआर, हैदराबाद द्वारा सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) के आधार पर विकसित किया गया था। इसका उद्देश्य प्रति पैनिकल में दानों की संख्या बढ़ाना है और यह 20 दिन पहले (~130 दिन) पक जाती है। इसकी कम अवधि के कारण, यह पानी और उर्वरकों की बचत करने में मदद करती है साथ ही मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी लाती है। इसका डंठल मजबूत होने का कारण यह जमीन पर गिरता नहीं है। चावल की गुणवत्ता मूल किस्म, सांबा महसूरी के समान है।
दूसरी किस्म, पूसा डीएसटी चावल 1, को भाकृअनुप-आईएआरआई, नई दिल्ली द्वारा एमटीयू 1010 के आधार पर विकसित किया गया था। यह किस्म लवणीय तथा क्षारीय मिट्टी में उपज में 9.66% से 30.4% तक की वृद्धि होने के साथ ही उत्पादन में 20% तक वृद्धि की संभावना है।
इन किस्मों को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल (जोन VII), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश (जोन V), ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (जोन III) जैसे राज्यों के लिए विकसित किया गया है।
इन किस्मों का विकास, भारत के विकसित राष्ट्र बनने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 2023-24 के बजट में, भारत सरकार ने कृषि फसलों में जीनोम एडिटिंग के लिए ₹500 करोड़ आवंटित किए हैं। भाकृअनुप ने तिलहन एवं दलहन सहित कई फसलों के लिए जीनोम-एडिटिंग अनुसंधान पहले ही शुरू कर दिया है।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि ज्ञान प्रबंधन निदेशालय, नई दिल्ली)
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