भारतीय झींगा जलजीव पालन से प्रतिवर्ष रूपये 20,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है, प्रति वर्ष 7 लाख तक रोजगार अवसर मिलते हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आता है। झींगा पालन में सघनीकरण पर किए गए हालिया अनुसंधान प्रयासों से उत्पादकता और फार्म आय में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, बिना खाये गए आहार और परपोषी उपापचय के कारण जलजीव पालन तालाबों में नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट इकट्ठा होना उच्च सघनता वाले झींगा पालन की एक कमी है। तथापि, झींगा संवर्धन तालाबों में अमोनिया का स्वीकार्य स्तर <1 ppm होता है, लेकिन प्राय: अमोनिया की मात्रा 4 पीपीएम के स्तर तक भी पहुंच जाती है जिससे झींगा की वृद्धि और उत्तरजीविता प्रभावित होती है जिसके कारण झींगा के उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत तक कमी आती है जिससे अंतत: कुल फसल नुकसान को बढ़ावा मिलता है। नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट के कारण पर्यावरणीय दबाव द्वारा आर्थिक नुकसान को कम करने में अनुकूल पर्यावरणीय गुणवत्ता को बनाये रखना महत्वपूर्ण होता है।
मीठा जलजीव पालन में प्रयोग करने हेतु नाइट्रीफाइंग तथा डिनाइट्रीफाइंग करने वाले जीवाणुओं के कंसोर्शिया वाले अनेक उत्पाद बाजार में मौजूद हैं। ये रोगाणु संवर्धन वातावरण के भौतिक-रासायनिक पैरामीटरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और इसलिए ये 15 से 45 पीपीटी की भिन्नता की लवणता वाले खारे जल के वातावरण में प्रभावी ढ़ंग से कार्य नहीं कर पाते। पर्यावरणीय रूप से प्रासंगिक जीवाणु पर एक दशक तक लगातार अनुसंधान करने के परिणामस्वरूप भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई के पास नाइट्रीफाइंग तथा डि-नाइट्रीफाइंग जीवाणु का समृद्ध कंसोर्शिया है जो कि खारा जलजीव पालन प्रणालियों में विषाक्त नाइट्रोजनयुक्त यौगिकों का प्रबंधन करने हेतु भारत में खारा जलजीव पालन प्रणालियों में उपयोग करने के लिए पूरी तरह से उपयुक्त हैं। CIBAMOX का विकास प्राकृतिक रूप से घटित होने वाले कीमोलिथोट्रॉफिक अमोनिया ऑक्सीडाइजिंग जीवाणु (AOB) तथा नाइट्राइट ऑक्सीडाइजिंग जीवाणु (NOB) और भारत के खारा जल इकोसिस्टम से डि-नाइट्रीफाइंग जीवाणु (DNB) के कंसोर्शिया के संवर्धन/लक्षणवर्णन और विकास द्वारा किया गया।
इस उत्पाद द्वारा गुजरात के सूरत और नवसारी जिलों के 27 तालाबों, आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर और भीमावरम जिलों के 15 तालाबों, और तमिल नाडु के कांचीपुरम और तिरूवल्लुर जिलों के 40 तालाबों में सफलतापूर्वक खेत परीक्षणों को पूरा किया गया था। संवर्धन के 45वें दिन से संवर्धन की समाप्ति तक दस दिनों में एक बार 3 लिटर/हे. की दर से इस उत्पाद का नियमित प्रयोग करने पर अमोनिया का स्तर अधिकतम स्वीकार्य सीमा से नीचे रखना पाया गया।
CIBAMOX के लाभ
उत्पाद का एक बार अनुप्रयोग (5 लिटर/हे. की दर पर) करने से अमोनिया, नाइट्राइट और नाइट्रेट हटते हैं और 3 लिटर/हे. की दर पर नियमित अनुप्रयोग करने पर संवर्धन तालाबों में नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट का इकट्ठा होना रूकता है। यह उत्पाद ग्रो-आउट तालाब और रि-सर्कुलेटरी प्रणालियों दोनों में लवणता (15 – 45 पीपीएम) की व्यापक भिन्नता में प्रभावी है।
अर्थशास्त्र
संवर्धन के 45 दिन बाद प्रत्येक दस दिनों में इस उत्पाद का एकबार प्रयोग करने पर 120 दिनों की फसल में कुल 7 बार इसका अनुप्रयोग करने की जरूरत होगी। प्रति अनुप्रयोग 3 लिटर की मात्रा से कुल 21 लिटर/हे./फसल की जरूरत होगी। यदि उत्पाद की लागत को प्रति लिटर रूपये 500/- मान लिया जाए, तब अंतिम व्यय रूपये 10,500/हे./फसल आएगा। खेत परीक्षणों से यह साबित हुआ है कि CIBAMOX का अनुप्रयोग करने से उत्तरजीविता दर में 5 से 10 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है। फार्म के लिए जहां प्रति वर्ग मीटर में 60 मत्स्य का स्टॉक किया जाता है, बढ़ी हुई उत्तरजीविता दर के कारण CIBAMOX द्वारा 900 किग्रा. की आवधिक बायोमास/उपज सुनिश्चित की गई जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक लाभ में रूपये 2.70 लाख/हे. तक की वृद्धि होगी।
प्रौद्योगिकी का व्यावसायीकरण
इस उत्पाद को दिनांक 16 जुलाई, 2017 को नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 89वें स्थापना दिवस के अवसर पर जारी किया गया जो कि व्यावसायीकरण के लिए तैयार है। भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई के एग्रीबिजनेस इनक्यूबेटर (ABI) द्वारा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने, क्षमताशील उपभोक्ताओं को रोगाणुओं के औद्योगिक उत्पादन हेतु उत्पादन सुविधाओं की स्थापना करने और तकनीकी प्रशिक्षण में परामर्शी सेवाएं देने में मदद की जाएगी।
(स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई)
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