3 अक्टूबर, 2025, जम्मू एवं कश्मीर
भाकृअनुप-केन्द्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, श्रीनगर ने जम्मू एवं कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के मुगल मैदान स्थित दूरस्थ और ऊंचाई वाले गुंडेरना गाँव में "अखरोट की पौध किस्म संरक्षण एवं संवर्धन" पर एक दिवसीय जागरूकता-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय किसानों को अखरोट की किस्म संरक्षण, प्रसार तकनीकों और बेहतर आजीविका के अवसरों के लिए मूल्य संवर्धन के बारे में शिक्षित करना था।
जम्मू क्षेत्र में स्थित किश्तवाड़ अपनी समशीतोष्ण जलवायु, उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल ऊँचाई के कारण अखरोट की खेती के लिए अत्यधिक अनुकूल वातावरण प्रदान करता है, जो इसे गुणवत्तापूर्ण अखरोट उत्पादन का एक संभावित केन्द्र बनाता है।
डॉ. एम.के. वर्मा, निदेशक, भाकृअनुप-सीआईटीएच, श्रीनगर, ने किसानों के लिए इस तरह के आउटरीच और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के महत्व पर जोर दिया तथा किसानों की किस्म संरक्षण, नर्सरी विकास, मदर ब्लॉकों की स्थापना, बाजार संपर्क और नर्सरी पंजीकरण को शामिल करते हुए भविष्य की कार्य योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की।

इस दौरे के दौरान, गुंडेरना गाँव के एक प्रगतिशील किसान, श्री सुनील सिंह ने अखरोट की 10 से ज़्यादा आशाजनक किस्मों का प्रदर्शन किया, जिनमें से एक को पहले ही किसानों की किस्म के रूप में पीपीवी एवं एफआरए के तहत संरक्षण के लिए आवेदन किया जा चुका है। अतिथि वैज्ञानिकों ने उनकी कई किस्मों को अत्यधिक आशाजनक बताया और बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा एवं संभावित रॉयल्टी तथा लाभ-साझाकरण के अवसरों को सक्षम करने के लिए पौध किस्म संरक्षण अधिनियम के तहत उनके पंजीकरण की सिफारिश की।
पौध किस्म संरक्षण अधिनियम, बेहतर फसल किस्मों के विकास तथा रखरखाव में किसानों के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देता है। पंजीकृत किसान अपनी संरक्षित किस्मों के उत्पादन, बिक्री तथा वितरण को नियंत्रित करने के हकदार हैं और यदि इनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है तो उन्हें रॉयल्टी भी मिल सकती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसानों को पंजीकरण शुल्क से छूट दी गई है, जिससे संरक्षण प्रक्रिया में पहुँच और समावेशिता सुनिश्चित होती है।
यह कार्यक्रम किश्तवाड़ में अखरोट उत्पादकों को पौध किस्म संरक्षण, वैज्ञानिक खेती पद्धतियों तथा मूल्य संवर्धन एवं किसानों के नवाचारों को कानूनी मान्यता प्रदान करके आय सृजन के बारे में जागरूकता बढ़ाकर सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, श्रीनगर)
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