20 जुलाई, 2025, हैदराबाद
कृषि अनुसंधान सेवा के 114वें आधारभूत पाठ्यक्रम (एफओसीएआरएस) के अंतर्गत, भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, हैदराबाद ने आज देश भर के प्रगतिशील किसानों तथा कृषि उद्यमियों के साथ एक संवादात्मक सत्र का आयोजन किया। इस सत्र का उद्देश्य युवा वैज्ञानिकों को नवीन और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के बारे में वास्तविक जानकारी प्रदान करना था।
इस सत्र में महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित सिद्धगिरि मठ और सिद्धगिरि गुरुकुल फाउंडेशन के श्री अद्रुश्य कादसिद्धेश्वर स्वामी; राजस्थान के श्री कान सिंह निर्वाण; आंध्र प्रदेश के श्री जी. सतीश बाबू; तेलंगाना की श्रीमती कोसिरेड्डी लावण्या रमण रेड्डी; और मेडक केवीके तुनिकी के प्रमुख डॉ. संभाजी डी. नलकर शामिल थे।
डॉ. गोपाल लाल, निदेशक, भाकृअनुप-नार्म ने अतिथि किसानों के प्रति आभार व्यक्त किया तथा परिवीक्षार्थियों को जैविक और टिकाऊ कृषि समुदायों की उभरती जरूरतों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

श्री अद्रुश्य कदसिद्धेश्वर स्वामी ने जैविक कृषि स्थापित करने और नवीन वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाने की अपनी प्रेरक यात्रा साझा की।
श्री कान सिंह निर्वाण ने अपनी प्राकृतिक कृषि पद्धतियों और पारंपरिक प्रथाओं के एकीकरण पर विस्तार से बताया।
श्री जी. सतीश बाबू ने अपनी स्वदेशी पशु-आधारित कृषि प्रणाली तथा उसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताया। श्रीमती लावण्या रमना रेड्डी ने रासायनिक खेती से जैविक खेती में अपने सफल परिवर्तन के बारे में बताया, विशेष रूप से जैविक मिर्च की खेती और ब्रांडिंग में अपनी उद्यमशीलता की सफलता पर प्रकाश डाला।
डॉ. संभाजी डी. नलकर ने आदिवासी समुदायों के साथ अपने व्यापक कार्य और स्थायी कृषि पद्धतियों के माध्यम से उनकी आजीविका को बेहतर बनाने के प्रयासों के बारे में बताया।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, हैदराबाद)
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