4 नवंबर, 2025, गरसा, कुल्लू
भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान, अविकानगर के उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केन्द्र, गरसा में "जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा 2025" के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं कल्याण विषय पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों के किसानों को पशु स्वास्थ्य, रोग निवारण, पोषण और संतुलित आहार के महत्व के बारे में जागरूक करना था।

सभी आगंतुक किसानों का स्वागत, डॉ. आर. पुरुषोत्तम, अध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक, उत्तरी शीतोष्ण केन्द्र, द्वारा किया गया।
कार्यक्रम की मुख्य चर्चा, पशुओं में होने वाले प्रमुख रोगों पर केंद्रित रही। इसमें गाय, भेड़, बकरी, याक एवं खरगोश में पाए जाने वाले मुख्य रोग जैसे -खुरपका-मुंहपका (FMD), एंटेरोटोक्सिमिया (ET), पी.पी. आर. (PPR), परजीवी संक्रमण, फुटरॉट, तथा शीप पॉक्स आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
वैज्ञानिकों ने इन रोगों के लक्षण, उपचार के प्राथमिक उपाय तथा इनके नियंत्रण के लिए अपनाई जाने वाली सावधानियों पर चर्चा की। सत्र के दौरान रोगों से बचाव के लिए वार्षिक टीकाकरण की आवश्यक को बताते हुए किसानों को पशुओं के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम की जानकारी दी गई तथा स्थानीय स्तर पर टीकाकरण के महत्व पर चर्चा भी की गई। साथ ही पशुओं के संतुलित आहार और पोषण पर एक व्यवहारिक सत्र आयोजित किया गया।

वैज्ञानिकों ने समझाया कि किस प्रकार संतुलित आहार न केवल पशुओं की उत्पादकता बढ़ाता है बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है। किसानों को विभिन्न चारे के अवयवों को पहचानने, मिश्रित आहार तैयार करने की विधि, तथा खनिज मिश्रण एवं नमक के उपयोग के लाभ बताए गए। इस अवसर पर फीड निर्माण की प्रक्रिया का भी प्रदर्शन किया गया ताकि किसान अपने स्तर पर पशुओं के लिए पौष्टिक आहार तैयार कर सकें।
कार्यक्रम के अंतर्गत किसान द्वारा लाए गए भेड़ एवं बकरियों के 15 मल नमूने की जांच की गई। इन नमूनों में परजीवी अंडों की उपस्थिति की जांच कर किसानों को परजीवी संक्रमण के कारण तथा उनके नियंत्रण के उपायों की जानकारी दी गई।
अंत में, किसानों ने अपने अनुभव साझा किए और वैज्ञानिकों से विभिन्न रोगों, टीकाकरण, तथा पोषण से जुड़ी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया।
इस कार्यक्रम में लाहौल-स्पीति जिले से आए 30 पशुपालन (5 पुरुष एवं 25 महिलाओं) ने भाग लिया।
(स्रोतः भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर)







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