भाकृअनुप-डीएमएपीआर को कालमेघ आधारित नवीन औषधि निर्माण के लिए भारतीय पेटेंट प्राप्त

भाकृअनुप-डीएमएपीआर को कालमेघ आधारित नवीन औषधि निर्माण के लिए भारतीय पेटेंट प्राप्त

18 दिसंबर, 2024, आणंद    

भाकृअनुप-औषधीय एवं सगंध पौध अनुसंधान निदेशालय को कालमेघ (एंड्रोग्राफिस पैनिकुलता) का उपयोग करके एक नवीन औषधि निर्माण के विकास के लिए भारतीय पेटेंट (पेटेंट संख्या 556149) प्रदान किया गया है। पेटेंट प्राप्त निर्माण, जिसका शीर्षक है ‘एंड्रोग्राफोलाइड पर आधारित माइक्रो एनकैप्सुलेटेड निर्माण का विकास और निर्माण की विधि’, कालमेघ में सक्रिय यौगिक, एंड्रोग्राफोलाइड की जैव उपलब्धता और निरंतर रिलीज में सुधार करता है, जिससे चिकित्सीय प्रभावकारिता में वृद्धि होती है।

भाकृअनुप-डीएमएपीआर के निदेशक, डॉ मनीष दास ने इस बात पर प्रकाश डाला कि माइक्रो कैप्सुलेटेड फॉर्मूलेशन की अपने उन्नत गुणों के कारण फार्मास्युटिकल उद्योग में अधिक मांग होने की उम्मीद है।

कालमेघ [एंड्रोग्राफिस पैनिकुलता (बर्म.फ़.) वॉल. एक्स नीस], आयुर्वेद में इस्तेमाल किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। कालमेघ एकैंथेसी परिवार की एक शाखायुक्त वार्षिक जड़ी बूटी है और लगभग 30-100 सेमी लंबी होती है। एंड्रोग्राफोलाइड इसका सक्रिय सिद्धांत है जिसमें चिकित्सीय क्रिया होती है। इस जड़ी बूटी का उपयोग मधुमेह, ब्रोंकाइटिस, बवासीर, पीलिया और बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। इसे रक्त शोधक माना जाता है और इसका उपयोग त्वचा रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। इसकी खेती गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में खरीफ मौसम की फसल के रूप में की जाती है।

इस आविष्कार में कालमेघ से समृद्ध एन्ड्रोग्राफोलाइड अर्क प्राप्त करने की विधि का भी वर्णन किया गया है। इस तकनीक के मुख्य लाभों में जैवसक्रिय यौगिक एन्ड्रोग्राफोलाइड की बेहतर जैवउपलब्धता और निरंतर रिलीज शामिल है, जो इसकी विविध जैविक गतिविधियों के कारण बेहतर प्रभावकारिता प्रदान करता है।

इस तकनीक को भाकृअनुप-डीएमएपीआर के डॉ. नरेंद्र ए. गजभिये और जितेंद्र कुमार ने विकसित किया है।

(स्रोत: भाकृअनुप-औषधीय एवं सुगंधित पौध अनुसंधान निदेशालय, आणंद, गुजरात)
 

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