24 अक्टूबर 2016, रांची
डॉ. एच. रहमान, उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान) द्वारा आज बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में उन्नत संकर शूकर नस्ल ‘झारसुक’ को जारी किया गया है। उन्होंने अपने संबोधन में कम समय में संकर शूकर नस्ल को विकसित करने वाली टीम को बधाई दी और शीघ्र आय के लिए अन्य पशुओं की अपेक्षा शूकर पालन पर बल दिया। डॉ. रहमान ने ‘झारसुक’ के शिशुओं को शूकर पालकों में वितरित किया और संबंधित प्रकाशनों को जारी भी किया।
डॉ. डी.के. शर्मा, निदेशक, राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र ने अपने संबोधन में कहा कि शूकर पालन देश में तेजी से विकसित होने वाला क्षेत्र है जिसमें बहुत सारे अवसर व संभावनाएं हैं। इसके माध्यम से ग्रामीण, बेरोजगार एवं भूमिहीन तथा सीमांत किसान अपने सामाजिक व आर्थिक स्तर में सुधार ला सकते हैं।
'झारसुक' शूकर, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी), बीएयू, रांची द्वारा विकसित किया गया है। विकसित नस्ल देसी शूकरों के विभिन्न आर्थिक लक्षणों की तुलना में श्रेष्ठ है। इस नस्ल को देसी और टैमवॉर्थ नामक ब्रिटिश शूकर से संकरित कर विकसित किया गया है जिसमें दोनों नस्लों के आधे-आधे आनुवांशिक गुण हैं। काले रंग, कम समय में विकास और बेहतर प्रजनन प्रदर्शन के लिए कई संसतियों तक इन दोनों नस्लों में आपसी समागम कराया गया। इस नस्ल के शूकर 8-10 माह की परिपक्व आयु में लगभग 80 किलोग्राम तक के हो जाते हैं। इस नस्ल के शूकर पालन से प्रति ब्यांत 8 से 12 शिशु और प्रति वर्ष ब्यांत प्राप्त किये जा सकते हैं। यह नस्ल किसानों के पालने के लिए उपयुक्त सिद्ध हुई है
डॉ. एन.एम. कुलकर्णी, कुलपति, बीएयू, भाकृअनुप मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कार्यक्रम में भाग लिया।
(स्रोतः भाकृअनुप राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र, गुवाहाटी)
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