चंदन की खेती से आय सृजन: कृषकों ने साझा किए कृषि में नवाचार

चंदन की खेती से आय सृजन: कृषकों ने साझा किए कृषि में नवाचार

4 जून, 2025, अल्मोड़ा

भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. लक्ष्मीकांत के नेतृत्व में विकसित 'कृषि संकल्प अभियान' को अल्मोड़ा और चमोली जिलों में सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा रहा है।

   

विभागाध्यक्ष, फसल सुधार, डॉ. निर्मल कुमार हेडाउ ने वैज्ञानिकों के एक दल के साथ ग्राम बाड़ीकोट, विकासखण्‍ड भिकियासैंण जिला अल्मोड़ा के कृषक श्री आनन्‍द सिंह से संवाद किया गया। इस दौरान श्री सिंह ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने पारंपरिक खेती से आगे बढ़ते हुए चंदन की खेती के माध्यम से आय सृजन की दिशा में नवाचार किया है। उनके द्वारा 8 से 10 नाली क्षेत्रफल में लगे चन्‍दन की फसल से प्रतिवर्ष रूपया 7 से 8 लाख की आय प्राप्‍त होती है। उन्‍होंने बताया चन्‍दन एक परजीवी पौधा है तथा इसमें जानवरों द्वारा कोई नुकसान नहीं किया जाता। अत: इसकी खेती पर्वतीय क्षेत्रों हेतु एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकती है।

अभियान के सातवें दिन संस्थान के वैज्ञानिकों ने अल्‍मोड़ा और चमोली जिले के 4 विकासखण्‍डों के 19 गांवों के 463 किसानों से सीधा संवाद कर उन्हें खरीफ फसलों जैसे मडुवा, मादिरा, दलहन एवं सब्‍जी फसलों की उन्नत किस्मों तथा उनकी सस्‍य एवं सुरक्षा तकनीकों की जानकारी देकर कृषि में नवाचारों को अपनाने हेतु प्रेरित किया। कृषकों को पर्वतीय क्षेत्रों हेतु उपयुक्त कृषि यंत्रों, जिससे समय व श्रम की बचत हो, के बारे में बताया गया।

 

डॉ. के.के. मिश्रा ने एकीकृत रोग प्रबंधन तथा पर्यावरण अनुकूल उपायों एवं रोगों की समय से पहचान कर हानिकारक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने की सलाह दी। साथ ही मधुमक्खी पालन एवं मशरूम उत्पादन को पर्वतीय किसानों की आजीविका सुरक्षा का साधन बताया। इसके अतिरिक्त नर्सरी प्रबंधन, मौसमी फसल योजना एवं पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन की जानकारी तथा फसल चक्र और जैव उर्वरकों के प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य व दीर्घकालीन उत्पादकता बनाए रखने की सलाह दी गयी। किसानों से संवाद कर उनकी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को समझा गया। पर्वतीय क्षेत्रों में उन्नत किस्मों की अनुपलब्धता, सिंचाई-जल संकट एवं वन्यजीवों (बंदर एवं जंगली सूअर) द्वारा फसलों को नुकसान मुख्‍य समस्‍या के रूप में उभरकर आए।

चमोली के परसारी एवं मेरग गांव में विशेषज्ञों द्वारा 136 जनजातीय कृषकों से संवाद किया गया। उन्हें मटर, पत्ता गोभी, मूली, धनिया के बीजों के साथ-साथ "किल्टा" टोकरी एवं फल/सब्जी की क्रेट्स का वितरण भी किया गया, जिससे कटाई के बाद की प्रक्रिया एवं विपणन कार्य में सहायता मिल सके। इस कार्यक्रमों का उद्देश्य किसानों के बीच वैज्ञानिक कृषि ज्ञान तथा विभागीय योजनाओं की जानकारी का प्रसार करना था। इसमें कृषि, बागवानी और अन्‍य विभागों के विशेषज्ञों ने भी भाग लिया। नोडल अधिकारी डॉ. कुशाग्रा जोशी ने कहा कि यह अभियान वैज्ञानिकों एवं किसानों के परस्पर ज्ञानवर्धन का माध्यम है।

(स्रोतः भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा)

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