21-22 दिसंबर, 2022, बरेली
कृषि विज्ञान केन्द्र - भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर बरेली में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती के महत्व को उजागर करने हेतु प्रशिक्षुओं को, सर्वप्रथम परिचय स्वरूप में, आचार्य विनय सक्सेना ने प्राकृतिक खेती की आवश्यकता व उसके सिद्धान्त पर विस्तार से चर्चा की। आचार्य ने पुराने समय में पूर्वजों की खेती करने की पद्धति की विशेषताओं जैसे अंतर फसल, देशी गाय की गोबर खाद का प्रयोग आदि विषयों का विवरण दिया और सभी कृषकों को इसका अभ्यास के लिए प्रेरित किया।


डॉ बी.पी. सिंह, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र ने सभी कृषकों को प्राकृतिक खेती को अपनाकर खेती की लागत को कम करने का आग्रह किया, साथ ही स्वस्थ व स्वच्छ खाद्य स्वयं उपयोग में लाने एवं दूसरे उपभोक्ताओं के लिए भी उपलब्ध कराने के लिए कृषकों से आग्रह किया।
श्री राकेश पांडे, वस्तु विषय विशेषज्ञ एवं मास्टर ट्रेनर ने कृषकों को प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले विभिन्न उत्पाद जैसे जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, निमास्त्र, दशपर्णी अर्क इत्यादि बनाने की विधियाँ कृषकों से साझा की। उन्होंने बताया कि इन उत्पादों को फसलों, सब्जियों व फलों में कितनी दर से कितने दिनों के अंतराल पर इसका उपयोग करने की जरूरत है।


श्रीमती वाणी यादव, वरि.तक.सहा (मृदा विज्ञान) ने कृषकों को इस पद्धति से मृदा स्वास्थ्य पर होने वाले विभिन्न लाभों की जानकारी दी जिसमे मृदा के सूक्ष्मजीव, मृदा की भौतिकी पर विभिन्न प्रभावों को विस्तार से बताया। इन्होंने कहा अत्यधिक रसायनिक उर्वरको से होने वाले दुष्प्रभावों जैसे - मृदा उर्वरता में गिरावट, जैविक कार्बन में कमी, ग्लोबल वार्मिंग व ग्रीन हाउस गैस, रासायनिक खेती में अधिक निवेश जैसी समस्याओं सामने आ रहा है, इन सभी समस्याओं का समाधान प्राकृतिक खेती को अपनाकर ही संभव है।
श्री राकेश पांडे, श्रीमती वाणी यादव एवं डॉ अमित पिप्पल के मार्गदर्शन में प्रयोगात्मक सत्र में प्रशिक्षुओं ने देसी गाय के गोमूत्र, गोबर, गुड, बेसन एक मुट्ठी पुराने वृक्ष की नम मिट्टी से जीवामृत व घनजीवामृत बनाया। इसके बाद, दशपर्णी अर्क बनाने के लिए अरंडी, बेशरम, अकौआ, बेल, आम, अमरूद, नीम, कनेर, आक, तंबाकू के पत्तों को पीस कर सोंठ, हींग, मिर्च, अदरक, लहसुन, हल्दी को गोमूत्र में मिलाकर लकड़ी के डंडे से सुई की दिशा में घुमाकर घोल तैयार किया गया। इस कार्यक्रम में बरेली जनपद के 30 युवा कृषकों ने सहभागिता दर्ज की ।
(स्रोतः कृषि विज्ञान केन्द्र - भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज़तनगर बरेली)
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