9-10 दिसंबर, 2016, नई दिल्ली
एनएएससी, नई दिल्ली में निक्रा की वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का दो दिवसयीय (9-10 दिसम्बर, 2016) आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य निक्रा के सभी सहयोगी संस्थानों की सम्मिलित समीक्षा तथा भावी योजनाओं पर चर्चा करना था।
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक भाकृअनुप ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में निक्रा की उपलब्धियों की सराहना की तथा योजनाओं की खूबियों की भी चर्चा की। उन्होंने योजना में स्टेट-ऑफ-द-आर्ट सुविधा के सर्वोत्तम उपयोग की आवश्यकता महसूस की। उन्होंने वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि वे वैश्विक स्तर पर निक्रा योजना की उपस्थिति को बढ़ाने के लिए प्रभावशाली पत्रिकाओं में अपने शोध पत्र प्रकाशित कराएं। इसी प्रकार से उन्होंने प्रत्येक क्षेत्रों के लिए प्रणाली स्थिरता एवं सततता सूचक, कार्बन शून्य कृषि को बढ़ावा देने वाली संक्षिप्त नीतियां प्रस्तुत करने की बात कही।


उन्होंने देश के निक्रा गांवों में जलवायु अनुरूप प्रौद्योगिकियों से तैयार पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं तथा निक्रा के अगले चरण के लिए कार्यवाही हेतु ठोस रणनीतियां बनाने के लिए लचीलापन संकेतकों से सीखने के लिए वैज्ञानिकों से कहा।
डॉ. सीएच. श्री निवास राव, निदेशक, क्रीडा ने निक्रा की उपलब्धियों पर आधारित एक संक्षिप्त प्रस्तुति दी जिसमें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय तथा भावी कार्यक्रमों में निक्रा परियोजना का योगदान शामिल था। कार्यक्रम में डॉ. के. अलगूसुन्दरम, उपमहानिदेशक (एनआरएम); डॉ. एस.एम. विरमानी, अध्यक्ष, निक्रा विशेषज्ञ समिति; डॉ. ए.के. सिंह, उपमहानिदेशक (कृषि विस्तार), डॉ. एस. जेना, उपमहानिदेशक (मात्स्यिकी) ने भाग लिया।
डॉ. एस. भास्कर, सहायक महानिदेशक (एएएफ एंड सीसी); डॉ. एस.के. चौधरी, सहायक महानिदेशक (एसडब्ल्यूसी), अटारी के निदेशकगण, विशेषज्ञ समिति सदस्य के साथ ही भाकृअनुप संस्थानों एवं केवीके के 40 वैज्ञानिकों तथा किसान प्रतिनिधियों ने इस दो दिवसीय कार्यक्रम में भाग लिया।
कार्यशाला में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन; फसल विकास; प्रौद्योगिकी प्रदर्शन; बागवानी फसलें; कीट बीमारियां एवं परागणकर्ताओं; मात्स्यिकी; पशुपालन; कमजोरी आकलन, सामाजिक-आर्थिक प्रभावों तथा कृषि परामर्श और एकीकृत मॉडल रूपरेखा से संबंधित 8 विषयों पर आधारित सत्र आयोजित किए गए जिनमें उपमहानिदेशकगणों द्वारा अध्यक्षता तथा सहायक महानिदेशकगणों द्वारा उपाध्यक्षता की गई।
(स्रोतः भाकृअनुप – केन्द्रीय शुष्कभूमि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद)








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