लवण प्रभावित मृदा का प्रबंधन एवं कृषि में लवणीय जल का उपयोग पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 24वीं द्विवार्षिक कार्यशाला का आयोजन भाकृअनुप – केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI), करनाल द्वारा अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना केन्द्र, आगरा और भाकृअनुप – केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मखदूम के साथ मिलकर दिनांक 5-7 जून, 2015 को किया गया। इस कार्यशाला का उद्घाटन डॉ. ए.के. सिक्का, उपमहानिदेशक (एनआरएम), भाकृअनुप ने किया। अपने उद्घाटन संबोधन में डॉ. सिक्का ने कहा कि विशेषकर सिंचित कमाण्ड क्षेत्र में सेकेण्डरी लवणीकरण तथा क्षारीयकरण, भूजल का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर अन्य प्रक्रियाओं से मृदा का अपघटन जैसे उभरने वाले मुद्दे चिन्ता का विषय है। डॉ. एस.एस. खन्ना, पूर्व सलाहकार, योजना आयोग, भारत सरकार ने तटवर्ती क्षेत्रों में लोगों के आजीविका संसाधन के तौर पर समुद्री खरपतवार की खेती करने पर जोर दिया। डॉ. एस.के. चौधरी, सहायक महानिदेशक (एसडब्ल्यूएम), भाकृअनुप ने पानी में फ्लोराइड तथा आर्सेनिक जैसे कुछ नुकसानदायक तत्वों पर किए जा रहे अनुसंधान पर बल दिया और सुझाव दिया कि हमें फसल उपज और गुणवत्ता पर इनके प्रभावों को कम करने के लिए अब आगे आना चाहिए और प्रौद्योगिकियां विकसित करनीं चाहिए। इन्होंने वर्ष 2015-17 के लिए अनुसंधान कार्यसूची के भाग के तौर पर तटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु विविधता के प्रभाव का अध्ययन करने पर जोर दिया।
डॉ. डी.के. शर्मा, निदेशक, भाकृअनुप – केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल तथा परियोजना समन्वयक ने परियोजना की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया और इस बात से अवगत कराया कि तटवर्ती और शुष्क भूमि लवणता सहित लगभग 6.73 मिलियन हैक्टर क्षेत्र लवणता से प्रभावित है। इससे लगभग 11 मिलियन टन खाद्यान्न का नुकसान उठाना पड़ता है। इन्होंने इस बात पर बल दिया कि दबाव सहिष्णु किस्में, नियंत्रित उपसतही निकासी और संरक्षित कृषि, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के प्रमुख विकल्पों में शामिल हैं।
डॉ. एस.के. अमबास्ट, निदेशक, आईआईडब्ल्यूएम, भुबनेश्वर ने समुद्री जल घुसपैठ, जलवायु परिवर्तन तथा संरक्षित कृषि पर अध्ययन करने को प्रमुखता दी।
डॉ. एस.के. अग्रवाल, निदेशक, भाकृअनुप – केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मखदूम ने बताया कि भारत में दूध उत्पादन में वर्ष 1951 से 2014 के दौरान 17 से 134 मिलियन टन तथा खाद्य उत्पादन में इसी अवधि के दौरान 51 से 264 मिलियन टन की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में आपस में समन्वय स्थापित करने के अच्छे अवसर है क्योंकि दोनों संस्थान अल्प संसाधनों के साथ कार्य कर रहे हैं।
इस अवसर पर एक वैज्ञानिक – किसान पारस्परिक विचार-विमर्श बैठक आयोजित की गई जिसमें किसानों ने अपनी चिन्ताओं के अनेक मुद्दों को उठाया। कम वर्षा वाले वर्षों में भी गेहूं की फसल में जलमग्नता; दीमक का प्रकोप: क्षेत्र की एक गंभीर समस्या, लवणीय क्षेत्रों में उप सतही निकासी की स्थापना, कृत्रिम भूजल संरचनाओं की स्थापना, मृदा व जल नमूनों की समुचित विधि और लवण सहिष्णु गेहूं किस्मों की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं को उठाया गया। इनमें से कुछ समस्याओं का समाधान करने की दिशा में वैज्ञानिकों द्वारा प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप और सुझाव दिए गए वहीं निदेशक, भाकृअनुप – केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल ने इस क्षेत्र में किसानों के सम्मुख उभरने वाली इन समस्याओं का समाधान करने में संस्थान के पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया।
दो दिनों के इस कार्यक्रम में कुल पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। चालू परियोजनाओं के कार्य की प्रगति पर चर्चा की गई और वर्ष 2015-17 की अवधि के लिए अनुसंधान कार्यक्रम को दो सत्रों में अंतिम रूप प्रदान किया गया।
इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना तथा परियोजना के स्वैच्छिक केन्द्रों, भाकृअनुप – केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के लगभग 80 प्रतिभागिओं और प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया।
(स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI), करनाल)
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