श्री चंद्र शेखर तिवारी, नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) के एक अभिनव और उत्साही किसान को गन्ना आधारित फसलों के उत्पादन से दोगुने से भी अधिक लाभ मिला। खेती के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले श्री तिवारी नरसिंहपुर स्थित राजकीय महाविद्यालय में प्रोफेसर थे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने पैतृक भूमि में खेती के हवेली (HAVELI) प्रणाली वाले पारंपरिक पैकेज को लागू करने वाले क्षेत्र की फसलों की खेती शुरू की। लेकिन उगाई जाने वाली फसलों की पैदावार और प्रतिफल (रिटर्न) से असंतुष्ट होने के कारण उन्होंने देश भर के विभिन्न शोध संस्थानों का दौरा किया और वैज्ञानिकों के साथ क्षेत्रीय फसलों की कम पैदावार से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए विस्तार से विचार-विमर्श किया। इसके बाद चीनी मिलों में या क्षेत्र में गुड़ उत्पादक इकाइयों में इसकी स्थिर और सुनिश्चित कीमत के कारण उन्होंने गन्ने की खेती को नरसिंहपुर जिले के किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प के रूप में सोचा।
श्री तिवारी ने गन्ने की खेती शुरू करने का निर्णय लिया और एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 35 से 40 टन गन्ना उगाया। लेकिन उनका सपना था कि गन्ना उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकियों को अपनाने के साथ कम-से-कम 75 से 80 टन प्रति हेक्टेयर गन्ना का उत्पादन किया जाए। भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, उत्तरप्रदेश का दौरा करने पर उन्होंने संस्थान के निदेशक से नरसिंहपुर में कम गन्ना उत्पादकता की समस्या के बारे में गहन चर्चा की। डॉ. ए. डी. पाठक, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएसआर ने क्षेत्र में गन्ने की कम उत्पादकता के पीछे संभावित कारणों का आकलन करने तथा इसके सुधार के लिए उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम का गठन किया।
भाकृअनुप-आईआईएसआर के तकनीकी हस्तक्षेप और जिले में उच्च उपज और लाभ पर इसका प्रभाव:
समय-समय पर नरसिंहपुर जिले के गन्ना क्षेत्रों का दौरा कर भाकृअनुप-आईआईएसआर के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र की प्रचलित मिट्टी और कृषि जलवायु परिस्थितियों के लिए विभिन्न उपचारात्मक उपाय सुझाए। श्री तिवारी और उनके साथी किसान लगातार संस्थान के वैज्ञानिकों के संपर्क में बने रहे।
भाकृअनुप-आईआईएसआर, लखनऊ के तकनीकी हस्तक्षेपों की मदद से जिले के अधिकांश गन्ना किसान 2017-18 फसल के मौसम से 75 से 80 टन/हेक्टेयर तक गन्ने की पैदावार ले रहे हैं जो 2016-17 फसल के मौसम तक गन्ने की उपज (52.0 टन/हेक्टेयर) की तुलना में 32.90% अधिक है।
प्रारंभ में किसानों को गन्ने आधारित फसल प्रणालियों में जैविक खेती के सिद्धांतों को अपनाकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार का अत्यंत ध्यान रखने की सलाह दी गई थी। अभियान के रूप में जिले में आयोजित संस्थान के आउटरीच कार्यक्रम ने किसानों को ढैंचा की हरी खाद, फसल अवशेष/चीनी कारखाने के कचरे को शामिल करने और सूक्ष्म जैविक भागीदारी के टीकाकरण के साथ अन्य जैविक खादों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। 2014-15 से 2018-19 के बीच इसने नरसिंहपुर की जैविक कार्बन सामग्री को क्रमशः 0.36% से बढ़ाकर 0.76% तक बेहतर किया है, जिसके परिणामस्वरूप 15% से 20% नाइट्रोजन उर्वरकों की बचत के साथ उच्च फसलों की पैदावार हुई।
श्री तिवारी ने छिड़काव सिंचाई का उपयोग करते हुए प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘पानी की प्रति बूंद अधिक फसल’ के मार्ग का अनुसरण किया और गन्ने की खेती को सफलतापूर्वक अधिक लाभदायक बनाया।
फसल में संक्रमण के बाद गन्ने को लगाने, हटाने और नष्ट करने से पहले गन्ने की मोइस्ट हॉट एयर ट्रीटमेंट (नम गर्म वायु उपचार) के लिए वैज्ञानिकों की सलाह पर किसानों ने अब कीमती बीज गन्ना सामग्री के 60% से 65% की बचत के साथ गन्ने के एकल कली सेट का उपयोग करके रोग मुक्त और स्वस्थ गन्ना नर्सरी उगाना शुरू कर दिया है।
सितंबर से अक्टूबर में गन्ने की शीघ्र रोपाई के फायदों से अवगत होते हुए किसानों ने अन्य लोकप्रिय फसलों जैसे आलू, चना, मटर, धनिया, लहसुन, प्याज आदि को उच्च उत्पादन क्षमता और आर्थिक प्रतिफल के लिए गन्ने के साथ अंतरफसल के तौर पर लिया। भाकृअनुप-आईआईएसआर के तकनीकी हस्तक्षेपों का काफी असर हुआ और 35 प्रतिशत गन्ना रकबा में शामिल किया गया है, जिसमें सितंबर से अक्टूबर तक गन्ना कृषि में मशीनीकरण की सुविधा के अलावा 150 से 180 सेमी तक गन्ना लगाया गया है। वर्तमान में उन्हें 2.11 के औसत बी:सी अनुपात के साथ उच्च लाभ मिल रहा है, जबकि गन्ना आधारित अंतरफसल प्रणाली से 2014-15 में 1.15 था।
मिट्टी और पर्यावरण को स्वस्थ बनाने तथा फसल अवशेषों को जलाने से रोकने के लिए जोरदार अभियान चलाए गए। श्री तिवारी की मदद और ठोस प्रयासों के कारण वैज्ञानिकों ने नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश में किसानों को फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में जागरूक किया जिसके परिणामस्वरूप जिले की पहचान फसल अवशेषों को जलाने से मुक्त जिले के रूप में सफलतापूर्वक हो पाई।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, उत्तरप्रदेश)
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