करण वंदना (DBW 187) पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों की सिंचित समय पर बुवाई की जाने वाली नवीनतम गेहूँ की किस्म है।
क्षेत्र में मौजूदा किस्मों मसलन, एचडी 2967, के 0307, एचडी 2733, के 1006 और डीबीडब्ल्यू 39 की तुलना में इस किस्म की पैदावार में काफी फायदा हुआ है। यह पत्तों के झुलसने और उनके अस्वस्थ दशा जैसी महत्त्वपूर्ण बीमारियों के खिलाफ बेहतर प्रतिरोध करता है। बुवाई के 77 दिनों बाद करण वंदना फूल देती है और 120 दिनों बाद परिपक्व होती है। इसकी औसत ऊँचाई 100 सेमी है जबकि क्षमता 64.70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 10 में 7.7 अंक और 43.1 लौह सामग्री के साथ इस किस्म की चपाती की गुणवत्ता बहुत बेहतर होती है।
इस किस्म को को लोकप्रिय बनाने और बढ़ावा देने के लिए भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश के साथ मिलकर 16 नवंबर, 2018 को जिले के गेहूँ किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।
श्रीमती कोइला देवी, श्री अर्जुन की पत्नी, गाँव रक्खुखर, जंगलकौडिया, गोरखपुर उन 100 किसानों में शामिल थीं जिन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया और करण वंदना के 2.5 किलोग्राम बीज की मिनी किट भी प्राप्त की। उसने नवंबर, 2018 के तीसरे सप्ताह में गेहूँ की बुआई की। श्रीमती कोइला ने खेत में उर्वरकों की अनुशंसित खुराक (150: 60: 40 किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर) लगाई और दो बार सिंचाई की। फसल के मौसम (सीजन) के दौरान उसने दो बार मैन्युअली (हाथ से) निराई किया। 10 अप्रैल, 2019 को 266 मी 2 (82.52 क्विंटल/हेक्टेयर) के छोटे क्षेत्र से उसने 220 किलोग्राम गेहूँ के उच्च पैदावार का लाभ उठाया। वर्तमान में, श्रीमती कोइला देवी क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए आकांक्षा और प्रेरणा के स्रोत हैं।
जिले के अन्य किसानों को भी उच्च पैदावार का लाभ मिला है। जिले में किसानों के खेतों में बीज (2.5 किग्रा) की समान मात्रा में उपज 80 से 220 किलोग्राम तक होती है। इस दृष्टिकोण से क्षेत्र में किस्मों को तेजी से लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल)
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