4 सितंबर, 2025, देहरादून
हिमालय सप्ताह समारोह (4-9 सितंबर, 2025) के एक भाग के रूप में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप)-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून ने "उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा की घटनाएं और आपदाएं: प्रभाव, तैयारी और आगे के उपाय" विषय पर एक विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया।
मुख्य अतिथि, डॉ. अनिल पी. जोशी, पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्तकर्ता तथा एफईएससीओ के संस्थापक ने हिमालय के महत्व और वहन क्षमता-आधारित विकास की आवश्यकता पर बल दिया, जहाँ उपभोक्ताओं का दृष्टिकोण पारिस्थितिक संतुलन एवं सतत विकास के अनुरूप होना चाहिए।
इंजी. मनु गौर, सदस्य, एसएसी उत्तराखंड; अध्यक्ष, टैक्सैब; सदस्य, प्रारूप समिति, यूसीसी; और श्री अनूप नौटियाल, संस्थापक, सतत विकास फॉर कम्युनिटीज, देहरादून, ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
इंजी. गौर ने दीर्घकालिक स्थिरता के लिए लक्षणों के बजाय मूल कारणों को संबोधित करने के महत्व पर जोर दिया।
श्री नौटियाल ने अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेपों की ओर ध्यान आकर्षित किया जो प्राकृतिक प्रणालियों को बाधित कर रहे हैं और आपदाओं को जन्म दे रहे हैं, साथ ही अपने संगठन के प्रमुख प्रकाशनों को भी साझा किया।
डॉ. एम. मधु, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी ने अत्यधिक वर्षा, बादल फटने तथा एकीकृत प्रबंधन एवं संरक्षण रणनीतियों की आवश्यकता और इससे जुड़ी चिंताओं पर प्रकाश डाला।
इस विचार-मंथन में 110 से अधिक प्रतिभागियों ने शिरकत की, जिनमें विभिन्न संगठनों के वैज्ञानिक, विशेषज्ञ तथा उत्तराखंड राज्य के संबंधित विभागों के अधिकारी, साथ ही लगभग 25 ऑनलाइन प्रतिभागी शामिल थे। उल्लेखनीय प्रतिभागियों में आईआईआरएस, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, जेडएसआई, एनआईआरडीपीआरटीआर गुरुग्राम और सरकारी विभागों के प्रतिनिधि शामिल थे।
यह विचार-विमर्श, हिमालय में अत्यधिक वर्षा की बढ़ती आवृत्ति तथा तीव्रता एवं खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी, बुनियादी ढाँचे और आजीविका पर इसके व्यापक प्रभावों पर केन्द्रित था।
प्रतिभागियों ने विकासात्मक योजना में जनमत को एकीकृत करने, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने, बहु-क्षेत्रीय तैयारी, सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे तथा समुदाय-आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण के महत्व पर बल दिया।
कार्यक्रम में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ज्ञान को सही एजेंसियों तक पहुँचाना ज़रूरी है जो इसकी ज़रूरत महसूस करती हैं या इस क्षेत्र में काम कर रही है।
लगभग 25 प्रतिभागियों ने हाइब्रिड मोड में कार्यक्रम में भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून)
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