जामुन आयरन, शर्करा, खनिज, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट सहित कई मूल्यवान गुणों वाला एक पौष्टिक देशी फल है। इसके पके फलों को ताजा खाया जाता है और इन्हें जेली, जैम, स्क्वैश, वाइन, सिरका और अचार जैसे विभिन्न पेय पदार्थों में संसाधित किया जा सकता है। जामुन फल, अपने मसालेदार स्वाद के साथ, गर्मियों के लिए एक ताज़ा पेय है। इसके अर्क में विभिन्न औषधीय गुण होते हैं, जिनमें जीवाणुरोधी, एंटिफंगल, एंटीवायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटी-एलर्जी, एंटीकैंसर, कीमोप्रिवेंटिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, फ्री रेडिकल स्केवेंजिंग, एंटीऑक्सिडेंट, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटी-डायरियल, हाइपोग्लाइसेमिक और एंटीडायबिटिक प्रभाव शामिल हैं।
2002 में, केन्द्रीय बागवानी प्रयोग स्टेशन, गोधरा, गुजरात ने जामुन के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य, आर्थिक सुरक्षा और विभिन्न विकारों के प्रति संवेदनशीलता के कारण इस पर व्यापक शोध किया। टीम ने 2010 में गोमा प्रियंका किस्म विकसित की, और फील्ड जीन बैंक में बड़ी संख्या में जामुन (72) के क्लोनल जर्मप्लाज्म स्थापित किए गए। अनुसंधान का उद्देश्य अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की शुष्क भूमि स्थितियों के लिए उपयुक्त नई और बेहतर किस्मों तथा उत्पादन तकनीकों को विकसित करना था।
अनुसंधान से जामुन की दो किस्मों, गोमा प्रियंका और गोमा प्रियंका II का विकास हुआ है। गोमा प्रियंका अपनी उच्च उपज, उच्च गूदा सामग्री और छोटे कद के कारण किसानों के बीच लोकप्रिय है, जो इसे उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए आदर्श बनाती है। गोमा प्रियंका, किसानों के बीच एक लोकप्रिय किस्म है, जो अपनी उच्च उपज (10वें वर्ष से 50- 70 किग्रा/ पेड़, उच्च गूदा सामग्री (85- 90%), कम बीज वजन, विपुल तथा नियमित फल देने वाली किस्म के लिए जानी जाती है, जो इसे कद में तुलनात्मक रूप से छोटा बनाती है। उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए आदर्श। इसका विस्तार गुजरात से आगे राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश तक हो गया है।
2009 से पहले, पश्चिमी भारत में कोई व्यवस्थित उद्यान उपलब्ध नहीं था। भाकृअनुप-सीआईएएच क्षेत्रीय स्टेशन एक लोकप्रिय बागवानी फसल जामुन पर शोध कर रहा है। देश भर में किसान बड़े पैमाने पर ब्लॉक वृक्षारोपण शुरू कर रहे हैं, जिसमें 800 से अधिक किसान वीएनआर, नर्सरी और अंबिका एग्रो जैसे स्टेशनों से सामग्री खरीद रहे हैं। यह विविधता सामाजिक-आर्थिक समृद्धि और पोषण सुरक्षा का वादा करती है।
इस परियोजना ने भारत में किसानों की उनके फसल क्षेत्रों एवं प्रबंधन तकनीकों पर निर्भरता बढ़ा दी है, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इस तकनीक को अपनाया है। पूर्ण विकसित पेड़ों से 250000 रु. से 350,000 रु. तक कमाई होती है। इस पहल ने अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अन्य किसानों को प्रेरित किया है, जिससे सामग्री आपूर्ति की आवश्यकता पैदा हुई है और युवा किसानों के लिए अवसर खुले हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, केन्द्रीय बागवानी प्रयोग स्टेशन, वेजलपुर, गोधरा, गुजरात)
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