4- 5 मार्च, 2024, गोवा
भाकृअनुप-केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा ने 4 से 5 मार्च, 2024 तक भाकृअनुप-केवीके, उत्तरी गोवा में प्राकृतिक खेती के विस्तार के हिस्से के रूप में 'प्राकृतिक खेती' पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।
डॉ. ए. वेलमुरुगन, सहायक महानिदेशक, मृदा एवं जल प्रबंधन, भाकृअनुप-प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रभाग ने टिकाऊ कृषि में प्राकृतिक खेती एवं जैविक प्रथाओं को एकीकृत करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कृषि समुदाय से रसायन-सघन खेती के तरीकों पर निर्भरता कम करने और भावी पीढ़ियों के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य को संरक्षित करने का आग्रह किया। डॉ. वेलमुरुगन ने किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए सब्जियों के बीज और सामग्री वितरित की और वैज्ञानिकों से कार्बन-तटस्थ कृषि-ईकोटूरिज्म मॉडल विकसित करने और कृषि में स्वैच्छिक कार्बन ट्रेडिंग का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्राकृतिक कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन, ब्रांडिंग और विपणन के महत्व पर भी जोर दिया।
भाकृअनुप-सीसीएआरआई, गोवा के निदेशक, डॉ. परवीन कुमार ने संस्थान की उपलब्धियों की जानकारी दी।
वरिष्ठ वैज्ञानिक (पशु चिकित्सा रोग विज्ञान) और अनुभाग प्रभारी पशु विज्ञान एवं मत्स्य विज्ञान, डॉ. शिरीष डी. नारनावरे ने कहा कि यह बकरी की सबसे महत्वपूर्ण नस्ल है, जो मांस और त्वचा उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है साथ ही तटीय क्षेत्र के छोटे तथा सीमांत किसानों की स्थायी आजीविका निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा प्रमुख, भाकृअनुप-केवीके, उत्तरी गोवा, डॉ. एन. बोम्मयासामी ने किसानों को दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी और उन्हें प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया।
बाद में, डॉ. वेलमुरुगन ने पश्चिम बंगाल प्रजनन पथ से खरीदी गई कुल 37 वयस्क ब्लैक बंगाल बकरियों (33 मादा और 4 नर) के नए बकरी झुंड का दौरा किया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 45 प्रतिभागियों ने भागीदारी की।
(स्रोत: केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा)
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